अखाड़ा एक,दावेदार दो;2 परिषद,विवाद को हवा दे रहे भगवाधारी

श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल को लेकर श्री महंत ज्ञानदेव सिंह व महत रेशम सिंह गुट के बीच कब्जे को लेकर विवाद चला आ रहा है। जहा अखाड़े में अध्यक्ष पद पर श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह महाराज काबिज है।, वहीं रेशम सिंह खुद को अखाड़े का महंत बताता है।

निर्मल अखाड़े का विवाद न्यायालय में विचाराधीन है।जिस पर कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया हुआ है। इस बात को सभी पक्ष भलीभांति जानते है कि कोर्ट के आदेश के बाद भी अखाड़े मेे कब्जे सम्बन्धी किसी प्रकार की गतिविधियों को अंजाम देना सीधे सीधे न्यायालय की अवमानना होगी। बावजूद इसके विगत दिनों रेशम सिंह 6 जुलाई को अखाड़े पर कब्जा करने का अल्टिमेटम दिया हुआ है। यह बात दोनो गुटों के बीच विवाद की है।

कौन गलत और कौन सही इस बात का फैसला न्यायालय को करना है। बावजूद इसके विवाद को तूल देकर दबाव की रणनीति के तहत कार्य किया जा रहा है। इसका प्रमुख कारण है कि अखाड़ा परिषदों का दो होना। जिस कारण से एक अखाड़ा परिषद रेशम सिंह के साथ खड़ी है जबकि निर्मल अखाड़े के श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह अखाड़ा परिषद के साथ शिद्दत के साथ खड़े है। जहा एक अखाड़ा परिषद से जुड़े संतो के यहां रेशम सिंह का आना जाना है,जिस कारण रेशम सिंह को उनका पूरा समर्थन है,और वह ही यदा कदा रेशम सिंह गुट को उकसाने का काम कर रहे है। यहां तक कि एक संत ने तो रेशम सिंह को यहां तक कहा था कि सीएम तो मेरे शिष्य है मेरे कहते ही चुटकियों मेे काम हो जाएगा,जबकि ये लोग जानते है कि मामला कोर्ट में विचाराधीन है जिसमे सीएम भी दखल नहीं से सकते। साथ ही कोर्ट ने यथास्थिति का आदेश भी दिया हुआ है।

विवाद को तूल देने की अहम बात रेशम सिंह का साथ देने का मतलब है कि निर्मल अखाड़ा उनके गुट मेे शामिल हो जाए ताकि उनके बहुमत मेे वृद्धि हो और संतो की राजनीति में उनका दबदबा बना रहे, साथ ही शासन प्रशासन को भी अखाड़ा परिषद के पदाधिकारी होने की आड़ लेकर दबाव बनाकर अपना उल्लू सीधा किया जा सके। बड़ी बात ये है कि रेशम सिंह को जो गुट विशेष निर्मल अखाड़े का असली दावेदार होने का समर्थन कर रहा है वहीं विगत वर्ष तक रेशम सिंह को फर्जी करार देता था। कुल मिलाकर कुछ भगवाधारी अपने स्वार्थ के चलते रेशम सिंह का इस्तेमाल कर रहे है जिससे दूसरे गुट को नीचा दिखाया जा सके ।यही कारण है कि निर्मल अखाड़े का विवाद समय समय पर उफान मारता रहता है । जबकि वास्तविकता ये है कि ऐसे संतो को ना तो रेशम सिंह और ना ही ज्ञानदेव सिंह से कोई लेना देना है। उनका एक ही मतलब है कि अपना उल्लू कैसे सीधा किया जा सके।

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