हरिद्वार। प्रयागराज कुंभ से पूर्व अखाड़ा परिषदों का मामला कोर्ट पहुंचने वाला है। इस संबंध में एक संत दो अखाड़ा परिषदों के होने से खिन्न होकर इसे कोर्ट में चैलेंज करने जा रहे हैं। साथ ही वे अखाड़ा परिषद के वैधानिक रूप से चुनाव कराने की कोर्ट से गुहार लगाएंगे।
नाम न छापने की शर्त पर अखाड़ा परिषद के विवाद को कोर्ट में लेकर जाने वाले संत ने बताया कि दो गुटों में बंटी अखाड़ा परिषद के कारण भ्रम की स्थिति बनी हुई है। कहा कि अखाड़ा परिषद में षडदर्शन साधु समाज का होना जरूरी है। बिना षडदर्शन साधु समाज के अखाड़ा परिषद को सर्वमान्य नहीं कहा जा सकता। जिस अखाड़ा परिषद में षडदर्शन साधु समाज की सहभागिता है वही अखाड़ा परिषद कही जा सकती है।
उनका कहना था अखाड़ा परिषद के नियम के मुताबिक 13 अखाड़ों की अखाड़ा परिषद में दो महत्वपूर्ण पद अध्यक्ष व महामंत्री पर संन्यासी, बैरागी या उदासीन सम्प्रदाय का साधु होना चाहिए। यदि परिषद का अध्यक्ष संन्यायी है तो महामंत्री बैरागी, उदासीन या निर्मल सम्प्रदाय से होना चाहिए। यदि अध्यक्ष इन सम्प्रदायों में से है तो सन्यासी महामंत्री होना चाहिए, किन्तु इस फार्मूले पर अमल न कर अपनी ढपली पर अपना ही राग अलापा जा रहा है। कहाकि कुछ लोग अखाड़ा परिषद की आड़ में अपना उल्लू सीधा करने का कार्य कर रहे हैं। उनका कहना था कि दो अखाड़ा परिषद होने से भी संत समाज में भ्रम की स्थित बनी हुई है। कौन असली है और कौन नकली इसको लेकर भी संतों के बीच तरह-तरह की चर्चाएं हैं।
बताया कि इन सबको देखते हुए वे अब इस मामले को लेकर कोर्ट जाएंगे। जिसमें वह कोर्ट से अखाड़ा परिषदों को भंग करने की मांग के साथ समर्थ अधिकारी की देखरेख में पुनः अखाड़ा परिषद के चुनाव कराने की मांग करेंगे।