हे रामः प्राईवेट चेली वाले भी हैं आचार्य, एक-दूसरे से गजब का है जुड़ाव, होती रहती है मारपीट तक

हरिद्वार। संन्यासी के लिए अपने कक्ष में काठ की स्त्री की मूर्ति रखना भी शास्त्रों में वर्जित कहा गया है। किन्तु आज मामला कुछ अलग है। भले की कुछ कथित भगवाधारी अपने प्रवचनों में मोह-माया का त्याग और आचरण में नैतिकता की दुहाई देते हों, परन्तु इनका चाल-चरित्र क्या है, यह किसी से छिपा नहीं है।


कुछ वर्षों से आचार्य जैसे प्रतिष्ठित पद के लिए भी बोली लगनी शुरू हो गई है। करोड़ों रुपये का चढ़ावा चढ़ाकर आचार्य बनाए जाने का प्रचलन हो गया है। हालांकि कुछ अखाड़े अभी भी चढ़ावे से दूर हैं, किन्तु माया के पॉश में फंसकर अंधे हो चुके कुछ कथित भगवाधारी माया को ही सबसे बड़ा मानने लगे हैं। अखाड़ों में यूं तो ब्राह्मण जाति में उत्पन्न विद्वान संन्यासी को ही आचार्य जैसा पद दिये जाने का विधान है, परन्तु अब माया के कारण गैर ब्राह्मण भी इस पद पर आसीन होने लगे हैं। वहीं जहां संन्यासी के लिए काठ की स्त्री को कक्ष में रखने और स्पर्श का भी निषेध बताया गया है वहीं वर्तमान में जिसके पास जितनी अधिक चेलियां वह उतना ही बड़ा मठाधीश माना जाने लगा है।


आचार्य बनाने और जरा सी बात बिगड़ने पर हटाने तक में देरी नहीं लगती, जिस कारण से कुछ आचार्य हर समय दवाब का दंश झेलते रहते हैं। वर्तमान में भी कुछ इस दंश को झेल रहे हैं।


यहां ऐसे आचार्य भी हैं, जो पहले से शादीशुदा हैं। तलाक भी लिया हुआ है। बावजूद इसके फिर भी इन्हेें चेलियों की कोई कमी नहीं है। सूत्र बताते हैं कि एक आचार्य ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी धर्मपत्नी से पहले तलाक लिया। साथ ही दूसरी को गांव में रखकर खुद ब्रह्मचारी बने रहे। तीसरी जो प्राईवेट है वह आचार्य जी के साथ रहती है, किन्तु इस प्राईवेट से भी अधिक प्राईवेट चेली कथित आचार्य ने बनायी हुई है। प्राईवेट चेली यूपी के गाजियाबाद की बतायी जा रही है और उससे भी बड़ी प्राईवेट मुम्बई में निवासी करती है। सूत्र बताते हैं कि जब कथित आचार्य कुछ कथा प्रवचन कर धन इकट्ठा कर लेते हैं या फिर चेली को धन की जरूरत होती है तो वह आकर आचार्य से धन वसूल कर चली जाती है। इतना ही नहीं कुछ दिन बीत जाने के बाद आचार्य भी उसके बिना नहीं रह पाते। कुछ दिन बीतने पर आचार्य या तो चेली को बुला लेते हैं या फिर चेली के पास स्वंय चले जाते हैं। सूत्रों की माने तो चेली और आचार्य के बीच मारपीट तक होती है। बावजूद इसके दोनों एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ पाते।


हालांकि इन आचार्य को लेकर भी संतों के बीच तरह-तरह की चर्चाएं हैं। हो सकता है की आने वाले समय में आचार्य जी का पद भी चला जाए, किन्तु फिलहाल आचार्य के पैदल होने की संभावना कम है। वैसे आचार्य यूपी के गाजियाबाद में एक बन रही फैक्ट्री में पार्टनर भी बताए जा रहे हैं।

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