संत विवाद नहीं करते, कालनेमि डाल रहे कार्य मैं बाधा: गोपाल गिरि

हरिद्वार। श्री शंभू दशनाम आवाहन अखाड़े के श्री महंत गोपाल गिरी महाराज ने कहा कि सन्त कभी विवाद नही करते हैं, क्योंकि वो शील और सन्तोष के धागे मे गुथे होते है। उन्हें काम, क्रोध, मोह, लोभ वर्जित है, जो सता और पद के लोभ मे रहते है वो झूठे है, वो सन्त नही सन्त के भेष मे कालनेमी है। उनके लिये धर्म कार्य मे विघ्न करना ही कार्य है।

क्योंकि सन्त सदा धैर्यवान होता है, जो मर्यादा मे रहता है।अखाड़े एक मर्यादा का नाम है। इसी मे शीलवान भजनानन्दी, तपस्वी सन्तो द्वारा मर्यादा कायम की। उसे अखाड़ा कहा गया है। पहले गुरू लोग मर्यादा मे रहने वाले को कुम्भ मे चूनते थे और उसे पद देते थे। अब नोट दो और पद लो, चाहे वो खर क्यों ना हो। बस पैसा होना चाहिए। प्रयाग कुम्भ मे हमेशा विवाद ही हुआ है। जब जब नागाओं की संख्या मैं वृद्धि हुई है तब तब या तो नया अखाड़ा बना या युद्ध हुआ।

गोपाल गिरी महाराज ने कहा कि रामादल शम्भू दल मे प्रयाग मे कई बार ठनी है। यहां तक की संन्यासियों से बैरागियों ने सुर्य प्रकाश भाला अपने कब्जे मे कर लिया और संन्यासियों ने राम प्रकाश भाला अपने कब्जे मे कर लिया। श्री हनुमान गढ़ी, भैरो गढ़ी, यहां तक श्री राम जन्म भूमि। गंगा सागर श्री कपिल मुनि संन्यासियों को गवानी पड़ी और जनकपुर वैष्णवो को गमाना पड़ा।

उन्होंने कहा कि उचित होगा कि सात अखाड़े शम्भू दल और दो रामा दल एक बलभाचार्य तथा दोनो उदासीन तथा निर्मला सब मिलकर नियमानुसार परिषद बनाये और पढ़े लिखे योग्य व्यक्तियों को दोनो दल चुने। मेला शांति से समपन्न कराये, तभी सन्तो की गरिमा है।

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