सनातन संस्कृति को विश्व में प्रसारित करना संतों का मूल उद्देश्यः विशोकानंद

संतों का कार्य समाज को सन्मार्ग की प्रेरणा देनाः रविन्द्र पुरी
हरिद्वार। निर्वाण पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विशोकानंद भारती महाराज ने कहा है कि भारतीय सनातन संस्कृति को विश्व पटल पर प्रसारित करना संतों का मूल उद्देश्य है। सनातन संस्कृति अनादि काल से विश्व का मार्गदर्शन कर संपूर्ण जगत को एक नई दिशा प्रदान करती चली आ रही है। कनखल स्थित श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी की छावनी में घाटा मेहंदीपुर बालाजी पीठाधीश्वर डॉक्टर स्वामी नरेश पुरी महाराज के तत्वाधान में श्रीमद् भागवत मूल पाठ के उपलक्ष्य में आयोजित संत सम्मेलन को संबोधित करते हुए स्वामी विशोकानंद भारती महाराज ने कहा कि स्वामी नरेश पुरी महाराज विद्वान, तपस्वी एवं ऊर्जावान संत हैं। जिनके द्वारा भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के प्रचार प्रसार में अतुलनीय योगदान प्रदान किया जा रहा है, जो कि युवा संतो के लिए प्रेरणादायी है।


अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष एवं श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के सचिव श्रीमहंत रवींद्र पुरी महाराज ने कहा कि संतों का कार्य समाज में सद्भाव का वातावरण बनाकर सन्मार्ग की प्रेरणा देना होता है। महापुरुष देश व समाज की रीढ़ होते हैं, जिनके पदचिन्हों पर चलकर ही एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण होता है। सनातन धर्म शाश्वत है जिससे प्रभावित होकर विदेशी लोग भी भारतीय संस्कृति को अपना रहे हैं। स्वामी नरेश पुरी महाराज के नेतृत्व में मेहंदीपुर बालाजी के दरबार द्वारा विश्व भर में सनातन संस्कृति का संदेश पहुंचता है। और उनके द्वारा संचालित सेवा प्रकल्प मानव जाति को अनेक प्रकार से लाभान्वित कर रहे हैं। हम उनके उज्जवल भविष्य और दीर्घायु की कामना करते हैं।


घाटा मेहंदीपुर बालाजी धाम के अध्यक्ष डॉक्टर स्वामी नरेश पुरी महाराज ने कहा कि देवभूमि उत्तराखंड हरिद्वार की पावन नगरी पर धार्मिक आयोजन में संतों का जो आशीर्वाद उन्हें प्राप्त हुआ है। उसके वह सदैव आभारी रहेंगे। उन्होंने कहा कि समाज सेवा करते हुए लोगों को उसका लाभ पहुंचाना और धर्म एवं संस्कृति को प्रत्येक मानव के हृदय में विराजमान करना ही उनके जीवन का मूल उद्देश्य है। वह अत्यंत सौभाग्यशाली है जो श्रावण मास में हरिद्वार के विद्वान संतों का सानिध्य उन्हें प्राप्त हुआ।
इस अवसर पर आवाहन पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अरुण गिरी, महामंडलेश्वर स्वामी कमलानंद गिरि, महंत रघुवीर दास, महंत सूरज दास, महंत जमुना दास, महंत गुरमीत सिंह, महंत गोविंद दास, महंत जसविंदर सिंह, महंत गंगा दास उदासीन, महंत श्याम प्रकाश, महंत विनोद महाराज, संत जगजीत सिंह सहित बड़ी संख्या में संत, महंत और गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

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