नहाय खाय के साथ हुई छठ पूजा की शुरूआत

हरिद्वार। भगवान भास्कर व उनकी पुत्री छठ मां की उपासना का पर्व शुक्रवार से नहाय खाय के साथ आरम्भ हो गया। छठ पर्व की शुरूआत के दिन गंगा के घाटों पर व्रतधारियों की भारी भीड़ रही। गंगा स्नान के साथ व्रतधारियों ने व्रत का आरम्भ किया।


बता दें कि छठ पर्व के पहले दिन नहाय खाय के बाद कद्दू की सब्जी बनायी जाती है। व्रत रखने वाले सबसे पहले इसे ग्रहण करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अलावा इसे खाने के कई सारे फायदे हैं। नहाय खाय के चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व की शुरूआत हिंदू पंचांग के मुताबिक कार्तिक माह की षष्ठी तिथि से शुरूआत होती है। लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठआज से नहाय खाय के साथ शुरू हो गया है।


आज शुद्धिकरण के बाद नहाय खाय किया गया। जबकि, 29 को खरना में मीठी खीर का भोग लगाया जाएगा। मुख्य पर्व 30 अक्टूबर को होगा। उस दिन शाम के समय महिलाएं पानी में उतरकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगी। जबकि, 31 अक्टूबर की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ छठ का समापन होगा। छठ पर्व में नहाय खाय के व्रती भोर बेला में उठते हैं और गंगा स्नान आदि करने के बाद सूर्य पूजा के साथ व्रत की शुरुआत करते हैं। नहाय खाय के दिन व्रती चना दाल के साथ कद्दू-भात तैयार करती हैं और इसे ही खाया जाता है। इसके साथ ही व्रती 36 घंटे के निर्जला व्रत को प्रारंभ करते हैं। नहाय खाय के साथ व्रती नियमों के साथ सात्विक जीवन जीते हैं ।


ऐसी मान्यता है सरसों का साग चावल और कद्दू खाकर छठ महापर्व की शुरुआत होती है। इसलिए व्रत के पहले दिन को नहाय खाय कहते हैं। इन दोनों सब्जियों को पूरी तरह से सात्विक माना जाता है। इसमें सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने की क्षमता बढ़ती है। साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अगर देखें तो कद्दू आसानी से पचने वाली सब्जी है। नहाय खाय के दिन से व्रती को साफ और नए कपड़े पहनने चाहिए। साफ-सफाई का विशेष ध्यान देना जरूरी होता है। पूजा की वस्तु का गंदा होना अच्छा नहीं माना जाता। नहाय खाय से छठ का समापन होने तक व्रती को जमीन पर ही सोना होता है। व्रती जमीन पर चटाई या चादर बिछाकर सो सकते हैं। घर में तामसिक और मांसाहार वर्जित है। इसलिए इस दिन से पहले ही घर पर मौजूद ऐसी चीजों को बाहर कर दिया जाता है। मान्यताओं के अनुसार छठी मैया को सूर्य देव की बहन माना जाता है। इसलिए छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए सूर्यदेव की पूजा की जाती है और नदियों या तालाब के तट पर सूर्यदेव की आराधना की जाती है।

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