श्रीराम आज सामाजिक समरसता के प्रतिबिंब हैंः स्वामी परमानंद

हरिद्वार। विश्व हिंदू परिषद ने मकर संक्रांति पर्व पर सम्पूर्ण हिन्दू समाज की सहभागिता से परस्पर सहकार, सहयोग, सम्मान की भावना के साथ सामाजिक समरसता दिवस के रुप में सम्मेलन का आयोजन गौतम फार्म हाउस में आयोजित किया।
सम्मेलन का शुभारम्भ महामंडलेश्वर युग पुरुष स्वामी परमानंद गिरी महाराज एवं महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद महाराज के साथ विश्व हिन्दू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने संयुक्त रुप से दीपक प्रज्वलित कर किया।

समरसता सम्मेलन में उपस्थित हिन्दू समाज को सम्बोधित करते हुए महामंडलेश्वर स्वामी परमानंद गिरी महाराज ने कहा कि भगवान श्रीराम का जीवन चरित्र वर्तमान कलियुग में भी प्रासंगिक है। श्रीराम आज सामाजिक समरसता के प्रतिबिंब हैं। श्रीराम ने जीवन के सबसे कष्टमयी कालखंड में अपने सहयोगी और सलाहकार वनवासियों को ही बनाया, जिनमें केवट, निषाद, कोल, भील, किरात और भालू सम्मलित रहे। यदि श्रीराम चाहते तो अयोध्या या जनकपुर से सहायता ले सकते थे। उनके साथी वह जन बने, जिन्हें आज कुछ लोग आदिवासी, दलित, पिछड़ा या अति-पिछड़ा कहते हैं। इन सभी को श्रीराम ने ‘सखा’ कहकर संबोधित किया, तो वनवासी हनुमान को लक्ष्मण से अधिक प्रिय बताया था। आज अनेक राजनैतिक हिंदू समाज को विभाजित करके बांटने के भयंकर षड्यंत्र में लगे हुए हैं। यह राजनैतिक शक्तियां देश में अराजकता और हिंदू मानबिंदुओं को आघात पहुंचाने के उद्देश्य से एकत्रित होकर कालनेमि राक्षस के रूप में हिंदू समाज को दिग्भ्रमित करने का प्रयास कर रही हैं।

स्वामी हरिचेतनानंद महाराज ने कहा कि रामायण केवल आस्था का विषय नहीं, अपितु यह उन सब जीवन मूल्यों का समावेश है, जो व्यक्ति, समाज और विश्व को सुखी और संतुष्टमयी रहने का मार्ग दिखाता है।
विश्व हिन्दू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि हिंदू समाज में जो दरारें हैं उन्हें चौड़ा करने के बजाए उसे भरना महती कार्य है। सन 1964 में विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना का उद्देश्य ही हिन्दू समाज को समरस करना था। विहिप ने कुंभ के अवसर पर प्रयागराज में प्रथम विश्व हिंदू सम्मेलन आयोजित कर किया, इसमें एकमत से संत समाज ने एक स्वर में घोषणा की थी कि हिंदू समाज में किसी भी प्रकार की छुआछूत पाप है और सभी हिंदू बराबर हैं, किसी भी हिंदू से कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। श्रीराम ने वन गमन के समय निषादराज को भी गले लगाया, केवट को भी पूरा सम्मान दिया। इतना ही नही भगवान राम ने उन सभी को अपना अंग माना जो आज समाज में हेय दृष्टि से देखे जाते हैं। इसका यही तात्पर्य है कि भारत में कभी भी जातिगत आधार पर समाज का विभाजन नहीं था।
विश्व हिन्दू परिषद के सामाजिक समरसता सम्मेलन में महामंडलेश्वर स्वामी ज्योतिर्मयानंद गिरी एवं महन्त केशवानंद और समस्त हिन्दू समाज के साथ कोरी, सुतार, सुनार, गिरी, गोस्वामी, वाल्मिकी, अहार, कहार, धीमान, सैनी, ब्राह्मण, त्यागी, क्षत्रिय, वैश्य आदि अनेक समाज के प्रतिनिधी सम्मिलित हुए।

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