कन्फ्यूजः महामण्डलेश्वर होने का दिया हुआ है हमफनामा और लिखते हैं शंकराचार्य
हरिद्वार। शंकराचार्य के पद पर आसीन होने के लिए आवश्यक है की व्यक्ति बाल ब्रह्मचारी, भाष्यकार, शास्त्रों का ज्ञाता, ब्राह्मण हो, किन्तु वर्तमान में लम्पट भी स्वंय को शंकराचार्य घोषित करने लगे हैं। इतना ही नहीं कुछ कथित शंकराचार्य ऐसे भी हैं, जिनके बच्चे हैं और बच्चे भी विवाह योग्य उम्र के हैं। ऐसे में सनातन को पलीता कैसे न लगे।
वर्तमान में स्वंय को शंकराचार्य घोषित करने की देश में एक बाढ़ सी आई हुई है। हर एक अपने को शंकराचार्य घोषित करने में लगा हुआ है। जबकि आदी शंकराचार्य ने देश के चार हिस्सों में चार पीठों की स्थापना कर 4 ही शंकराचार्य बनाए थे, किन्तु वर्तमान में करीब 6 दर्जन शंकराचार्य घूम रहे हैं। हरिद्वार में एक संत ऐसे हैं, जो शंकराचार्य बने और बाद में वे फिर से अपने पूराने ढर्रे पर आ गए। एक शंकराचार्य ऐसे हैं, जो हैं तो एक अखाड़े के महामण्डलेश्वर किन्तु स्वंय को शंकराचार्य घोषित किया हुआ है। जबकि हुक्का-पानी बंद होने पर इन कथित शंकराचार्य ने हलफनामा देकर स्वंय को मण्डलेश्वर बताया है। बावजूद इसके ये आज भी स्वंय को शंकराचार्य कहलवाते हैं। ऐसे शंकराचार्यों पर न तो सरकार कार्यवाही करने को तैयार है और न ही धर्म परायण जनता इनके द्वारा हो रही धर्म की हानि पर अपनी जुबान खोलने को तैयार है।
अब बात ऐसे शंकराचार्य की करते हैं, जिनके एक पुत्र रत्न भी है। सूत्र बताते हैं कि शकराचार्य के पुत्र की उम्र विवाह योग्य है, किन्तु ये कहते स्वंय को शंकराचार्य हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक संत ने बताया कि जिस महिला से कथित शंकराचार्य को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है वह आज भी शंकराचार्य के इर्द-गिर्द रहती है। ऐसे में धर्म के हो रहे ह्रास को रोके तो कौन रोके, जब खेत को बाढ़ ही खाने लगे तो फिर रक्षा का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।