स्वादुओं की भीड़ से हो रहा भगवा का अपमान

बीस लाख देने के बाद भी पद पर लटकी हुई है तलवार

यहां आचार्यों की लीला भी अनोखी, कभी भी हटाए जा सकते हैं पद से
हरिद्वार। जो स्वादु है, वह साधु नहीं हो सकता। जो बेस्वादु है वही साधु है। आजकल समाज में स्वादुओं की संख्या अधिक हो गई है। ऐसे में धर्म का पतन होना स्वाभाविक है। भगवा धारण कर सब कुछ त्यागने का नाटक करने वाले कुछ कथित भगवाधारियों ने प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से अब भगवा को भी व्यापार का जरिया बना लिया है। भगवा के नाम पर भी लाखों-करोड़ों का लेनदेन करने में ये मशगूल हैं। यही कारण है की कुछ कथित भगवाधारी कुछ फर्मों में पार्टनर तक हैं।


हालात यह है कि समाज में पद व प्रतिष्ठा पाने के लिए ये लाखों खर्च करने में भी पीछे नहीं हैं। और लाखों खर्च करने के बाद यह उसका कई गुना अधिक कमा लेते हैं। यही कारण है कि अब कुछ अखाड़ों में आचार्य जैसे सम्मानित पद को भी बेचा जाने लगा है। यही कारण है कि अब आचार्य जैसे पदों पर गैर ब्राह्मण व धूर्त लोगों को भी पदासीन किया जाने लगा है।


सूत्र बताते हैं कि कुछ समय पूर्व आचार्य बने तीन बीबी व पांच बच्चों के पिता को आचार्य बनने के लिए तय रकम न देने पर फटकार का सामना करना पड़ा। जिसके चलते बीते माह आचार्य नासिक में तय रकम में से 20 लाख रुपये एक महंत को देकर आए। बावजूद इसके अभी भी बकाया शेष है।


बहरहाल अखाड़ा सूत्रों के मुताबिक आचार्यश्री को कुंभ से पूर्व पद से चलता किया जा सकता है। ये आचार्य व्यवसाय में भी पूर्ण रूचि रखते हैं। व्यवसाय में पार्टनर के तौर पर इन आचार्यश्री ने विगत माह यूपी की अपनी एक चेली के खाते में एक करोड़ रुपये ट्रांसफर किए हैं। जिस कारण से अखाड़े वाले और नाराज हो गए। सूत्रों के मुताबिक अखाड़े के पदाधिकारियों का कहना है कि चेली को एक करोड़ और तय रकम देने में आनाकानी, ऐसे में आचार्य का इलाज करना ही होगा। जिसके चलते कुंभ से पूर्व आचार्य की विदाई तय मानी जा रही है।


वहीं एक और अखाड़े के आचार्य भी पैदल होने वाले हैं। कारण तो अनेक हैं। जिनमें से एक अखाड़े के पदाधिकारियों को मिलने का समय न देने और घंटों गेट के बाहर खड़ा करके रखने के कारण अखाड़े के संतों के क्रोध का गुब्बारा फूला हुआ है। वह गुब्बारा कभी भी फूट सकता है। वैसे इन आचार्यश्री के कारनामे नेशनल नहीं इंटरनेशनल हैं। सूत्र बताते हैं कि नए आचार्य की तलाश के लिए मशक्कत शुरू की जा चुकी है। कुछ ने आचार्य बनने से इंकार कर दिया है।


सूत्रों बताते हैं कि यह आचार्य ऐसे हैं, जो अखाड़े के पदाधिकारियों के खिलाफ ही गहरा षडयंत्र बुन चुके हैं। जिस कारण से अखाड़े के संतों पर भी कभी भी संकट के बादल छा सकते हैं। बहरहाल स्थिति यह है कि आज स्वादुओं का बोलबाला हो गया है। स्वादुओं की इस भीड़ में साधु को पूछने वाला कोई नहीं है।

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