दिनमान बढ़ने पर बरसात में घोंसला बनाता है नर बया
हरिद्वार। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के जंतु एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग के अन्तर्राष्ट्रीय पक्षी वैज्ञानिक एव ंएमेरिटस प्रोफेसर दिनेश भट्ट की टीम पक्षियों के संवाद एवं प्रजनन पर विगत कई वर्षों से शोधरत है।
प्रोफेसर दिनेश भट्ट ने बताया कि ऋतु परिवर्तन से केवल मनुष्य ही नहीं अपितु सभी प्राणी प्रभावित होते हैं। ग्रीष्म ऋतु में 21 जून जिस दिन उत्तरी गोलार्ध पर सूर्य की रोशनी सबसे अधिक देर तक रहती है) के बाद बया पक्षी में प्रजनन की इच्छा जागृत करने वाले हार्मोन जैसे एलएच, एफएसएच एवं टेस्स्टटीरॉन का स्राव होने लगता है और नर बया पक्षी (विबरबर्ड) केसिर, गर्दन एवं चेस्ट का भाग चटक पीला हो जाता है और नर मादा की तुलना में ज्यादा आकर्षक लगने लगता है।
प्रोफेसर भट्ट ने पक्षियों की जैविक घड़ी पर भी अध्ययन किया है। उनके अनुसार बरसात में प्रजनन में लिप्त होने का कार्य जैविक घड़ी के अधीन हैं। यह घड़ी दिनमान व तापमान के घटते बढ़ते क्रम के अनुरूप पक्षियों को टाइम और सीजन बताकर उनके मस्तिष्क को सक्रिय करती है और तभी हार्मोन निकलते हैं। यूं तो उत्तर भारत में अधिकांश पक्षी जैसे कोयल, मैगपाईरोबिन, सनबर्ड इत्यादि वसंत ऋतु में दिनमान के बढ़ने के कारण गायन-वादन के साथ प्रजनन शुरू करते हैं, किंतु कुछ पक्षी प्रजातिया ंजैसे स्पॉटेडमुनिया और बया दिनमान अधिकतम पहुंचने के बाद वर्षा ऋतु में ही प्रजनन करती हैं। ताकि वर्षा ऋतुके बाद धान, कंगनी व समां इत्यादि फसलों के बीज इनके बच्चों को भोजन के रूप में खिलाया जा सके।
प्रोफेसर दिनेश भट्ट ने बताया कि यह प्रकृति की एक विचित्र देन है कि लगभग हर पक्षी प्रजाति को आंतरिक जैविक घडी से यह ज्ञात हो जाता है कि प्रजनन कब करना है। उसी के अनुसार ऋतु का चयन, नर मादा पेयरिंग और घोंसला निर्माण का कार्य प्रारंभ होता है।
उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के पक्षी विद डॉ. विनय ने बताया कि बया का घोंसला पक्षी प्रजातियों में सबसे अनोखा, इंजीनियरिंग की दृष्टि से बेजोड़, अटूट एवं आंधी-तूफान व बरसात से अप्रभावित रहता है। घोंसले का निर्माण नर पक्षी द्वारा किया जाता है। घोंसले के अर्ध-निर्माण के बाद मादाएं घोसले का निरीक्षण करती हैं। यदि निरीक्षण में घोंसला फिट पाया गया तो मादा उस नर के साथ प्रजनन हेतु पेयरिंग कर लेती है। घोंसला रिजेक्ट करने पर मादा अन्य नरो के घोसले का निरीक्षण करती है और अनुकूल घोंसला पाने पर नर को घोंसला पूर्ण करने का संकेत देती है और इस तरह प्रजनन के लिए दोस्ती हो जाती है। इसके बाद मादा बया भी घोंसले के चेम्बर को सजा ने एव ंसवारने का कार्य करती है।
प्रोफेसर भट्ट की शोध टीम ने अवगत कराया कि बया पक्षी समूह में घोंसला बनाती है ताकि प्रिडेटरों यानी शिकारी जन्तुओ से सामूहिक रूप से रक्षा की जा सके। उत्तर भारत में बया द्वारा प्रायः बेर, अकेसियाया अन्य कटीले पेड़ पर घोंसला बनाया जाता है ताकि सांप और चील इत्यादि पेड़ पर ना आ सके। घोंसले का निचला हिस्सा लंबा और एंट्री भी यहीं से होती है। घोंसलेकेमध्य भाग में ब्रुड चेंबर होता है जिसमें अंडे दिए जाते हैं और चूजों का लालन-पालन होता है।
प्रोफेसर भट्ट की शोध टीम ने बताया कि बया उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में नहीं पाई जाती है। इसका विस्तार केवल तराई क्षेत्र तक ही सीमित है। टीम ने अपने सर्वेक्षण में बया के कुछ घोसलों में जुगनू को जगमगाते हुए देखा है। दुर्भाग्य से जुगनू तो कई क्षेत्रों से विलुप्त हो चुके हैं। प्रोफेसर भट्ट की टीम द्वारा उत्तराखंड में किया गया वर्तमान सर्वेक्षण व मुंबई नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी का अध्ययन बताता है कि बया के घोसले के समूह में भी कमी आई है। प्रोफेसर भट्ट की शोध टीम ने बया के प्रजनन व्यवहार में परिवर्तन भी पाया है। अब नर बया पेड़ों की जगह बिजली और टेलीफोन के तारों पर भी नेस्ट बनाने लगी है। यह शोध कार्य सन 2022 में डरबन में आयोजित होने वाली वर्ल्ड ओर्निथोलॉजिकल कांग्रेस में प्रस्तुतीकरण हेतु भेजा जा रहा है। पक्षी संवाद एवं विविधता शोध टीम में पारुल रेखा आशीष शिप्रास क्रियरूप से भाग ले रहे हैं।


सावन-भादों में बया पक्षी भी घोसलें का झूला बनाकर झूलती है


