गजब कुंभ: महाकुंभ में डबल शंकर मंडलेश्वर भी मचा रहे धमाल

प्रयागराज। संन्यासियों के दस नामों की उत्पत्ति भगवान शिव के द्वारा हुई है। जबकि कुछ संत आदी शंकराचार्य भगवान को दशनामी परम्परा का जनक मानते हैं। अखाड़ों की उत्पत्ति भी आदी शंकराचार्य ने की ऐसा कहा जाता है। भगवान शंकराचार्य के प्रादुर्भव से पूर्व आवाहन अखाड़े का गठन हो चुका था।


संन्यासियों के दस नाम गिरि, पुरी, भारती, सरस्वती, वन, अरण्य, पर्वत, सागर, आश्रम, तीर्थ हैं। संन्यास लेने वाला प्रत्येक साधु इन्हीं दस नामों से जाना जाता है।


गुरुमुखी संत को इन्हीं दस नामों में से एक नाम दिया जाता है, जबकि मनमुखी भले ही इन दस नामों में से कोई नाम रख ले किंतु उसे सन्यासी नहीं कहा जा सकता।


इन दस नामों में से एक ही नाम दिया जाता है। जैसा कि यदि कोई गिरिनामा साधु है तो उसका शिष्य भी गिरिनामा होगा। वर्तमान में सभी मान्यताओं को दर किनार कर कुछ साधु अपनी मनमर्जी करने पर उतारू हो गए हैं। अब हालात ये हैं कि आश्रमनामा से सन्यास लेने वाला साधु गिरिनामा बनने लगा है।


सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह कि अब संत दशनाम के दो नामों का उपयोग करने लगे हैं। महाकुंभ में इस बार एक ऐसी साध्वी महामंडलेश्वर देखने को मिली जो भारती और पुरीनामा दोनों का अपने नाम के साथ प्रयोग कर रही है।


ऐसा पहली बार देखने को मिला जब कोई संत भारती के साथ पुरी भी हो। दशनामी संत को भगवान शिव का रूप कहा जाता है। उस हिसाब से दो उप नामों का प्रयोग करने वाले संत को तो फिर डबल शंकर कहना गलत नहीं होगा। वैसे डबल शंकर साध्वी का शिविर सेक्टर 20 में देखा जा सकता है।

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