विडम्बनाः एकता के अभाव के बीच संत को टिकट देने की मांग
सवालः स्वामी यतीन्द्रानंद, ब्रह्मस्वरूप, सतपाल, ऋषिश्वरानंद चुनाव क्यों हारे!
हरिद्वार। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली और वहां से माफियाओं के सफाए से प्रभावित होकर हरिद्वार का संत समाज भी अब हरिद्वार लोकसभा सीट से किसी एक संत को टिकट देने की मांग करने लगा है। संतों का मानना है कि यदि किसी संत को टिकट मिलता है और वह विजयश्री को प्राप्त करता है तो वह भी योगी आदित्यनाथ की भंाति कार्य करेगा। जबकि सांसद का चुनाव जीतना और सीएम बनकर कार्य करना दोनों अलग-अलग बातें हैं।
संतों के बीच से संत को टिकट देने की मांग ऐसे समय में उठी है, जब संतों के बीच एकता का अभाव देखने को मिल रहा है। ऐसे में संत को टिकट देने पर संत के जितने की क्या गारंटी है। बात हरिद्वार की चल रही है तो सभी जानते हैं कि यहां संतों के बीच एकता कितनी है। जितने संत हैं, उनसे कहीं अधिक उनके गुट है। उन गंटों के अलावा विभिन्न दल व समितियों का गठन किया हुआ है। कुछ संत ऐसे हैं, जिन्होंने संतों के ही आश्रमों पर कब्जा किया हुआ है। कोई कांग्रेसी संत है तो कोई भाजपा समर्थित संत। कुछ आश्रम-अखाड़ों में कांग्रेसी नेताओं का जमावड़ा लगा रहता है, तो कुछ आश्रम में भाजपा नेताओं का।
मजेदार बात तो यह की यहां तो अखाड़ा परिषद भी दो हैं। और विभिन्न मत सम्प्रदायों के संत भी दो अखाड़ा परिषदों के बीच बंटे हुए हैं। उनमें भी कुछ ऐसे हैं, जो दल बदलने के लिए तैयार बैठे हैं। बस उन्हें केवल पद मिलने का इंतजार है। संतों की लीला देखिए की दूसरे संत के आश्रम को कुछ संत मिलकर दूसरे के नाम कर तक देते हैं। कुछ ऐसे हैं जिन पर न्यायालय की अवमानना, बलात्कार, धोखाधड़ी जैसे संगीन आरोप हैं। कई ऐसे भी हैं जिन्होंने भगवा धारण करने के बाद भी परिवार बसाए हुए हैं।
बात यदि संतों की एकता की करें तो आज जो बात संत को टिकट देने की उठ रही है, इस बात की क्या गारंटी की टिकट मिलने के बाद संत को विजयश्री मिल ही जाएगी। हरिद्वार सीट से लोकसभा के लिए महामण्डलेश्वर स्वामी यतीन्द्रानंद गिरि महाराज को टिकट मिला। स्वामी ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी व सतपाल ब्रह्मचारी ने विधानसभा का चुनाव लड़ा। नतीजा क्या निकला। इसके साथ ही ऋषिश्वरानंद महाराज ने भी चुनाव लड़ा। नतीजा वहीं ढाक के तीन पात वाला रहा। सभी चुनावों मंे संतांे को हार का सामना करना पड़ा। (केवल एक स्वामी जगदीश मुनि ऐसे रहे जिन्होंने विजयश्री हासिल की। वह भी राम मंदिर आंदोलन की लहर में) उस समय संतों की एकता क्यों काम नहीं आई। यहां तक की विगत विधानसभा चुनाव में तो एक संत ने दूसरे संत को टिकट न मिले इसके पूरे प्रयास किए और कई दिनों तब दिल्ली में डेरा डाले रखा। यहां तब की ऐसे संत भी हरिद्वार में मौजूद हैं। जो एक पार्टी विशेष के बड़े वफादार स्वंय को कहते नहीं थकते, किन्तु जब चुनाव का समय आता है तो वह अपनी की पार्टी के प्रत्याशी को हराने में पूर्ण सहयोग करते हैं और हारने के बाद भी उसके सिर पर ताज सज जाता है तो अपने को पाक-साफ दिखाने के लिए उसका प्रचार भी करते हैं।
संतों का मानना है की संतों के मठ-मंदिरों पर भू माफिया कब्जा कर रहे हैं। यह बात कुछ हद तक सही है, किन्तु ऐसे भी संत हैं जो संतों की सम्पत्ति पर कब्जा कर रहे हैं या फिर माफियाओं को कब्जा करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। ऐसे संतों के खिलाफ आज तक किसी भी मठ-मंदिर से कोई आवाज नहीं उठी। इतना ही नहीं सम्पत्ति को लेकर कई संतों की हत्याएं भी हो चुकी हैं। यही एकता के विघटन की बड़ी वजह है। अब देखना होगा की हरिद्वार सीट से किसको टिकट मिलता है।