हरिद्वार। श्री पंच शंभू दशनाम आवाह्न अखाड़े के श्रीमहंत गोपाल गिरि महाराज ने एक बार फिर से अर्द्धकुंभ को कुंभ कहकर प्रचारित व प्रसारित करने पर सरकार पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने इसके साथ ही अखाड़ा परिषद का गीत गाने वालों के खिलाफ भी आवाज उठायी।
श्रीमहंत गोपाल गिरि महाराज ने कहाकि उत्तराखण्ड के मुख्यमन्त्री पुष्कर सिंह धामी कुम्भ करने की फरियाद लेकर कौन सी अखाडा परिषद के पास जा रहे हैं। अखाडा परिषद तो पहले से ही भंग है। ऐसे में किस अखाड़ा परिषद की बात की जा रही है, समझ से परे है। उन्होंने कहाकि सर्वप्रथम सन्यासी तीन अखाड़े हैं, जिन का कुम्भ मेला है, जो आदी शंकराचार्य से पहले से हैं। कुम्भ मेला का स्नान भी असल में तीन ही अखाड़े का होता है। बाकी इन अखाड़ों के साथ स्नान करते हैं।
कहाकि सर्व प्रथम अखाडा श्री शम्भू पंच दशनाम आवाहन नागा सन्यासी सन् 547 ई. का है। दूसरा अखाडा श्री पंचायती अटल नागा सन्यासी सन् 646 ई. का और तीसरा अखाडा श्री पंचायती अखाडा महानिर्वाणी नागा सन्यासी सन् 749 ई. का है। जबकि आदी शंकराचार्य जी का जन्म हुआ सन् 789 ई. में हुआ। वह 32 वर्ष जीवित रहे। सन् 821 ई. तक आदी शंकराचार्य जी ने कोई दशनाम नहीं बनाया। ना कोई अखाडा बनाया। दशनाम भगवान शंकर से उत्पन्न हुआ है। शंकराचार्य डण्डी स्वामी हैं। डण्डी स्वामी डण्ड, शिखा और जनेऊधारी होते हैं अर्थात बिना डण्ड और जनेऊ के त्याग के बिना और चोटी कटाये बिना सन्यासी नहीं बनते हैं।
श्रीमहंत गोपाल गिरि महाराज ने बताया कि शंकराचार्य जी के कैलाशवाश के 35 वर्ष बाद आवाहन अखाड़े से सन् 856 ई. मंे आनन्द अखाडा बना और उसके 48 वर्ष बाद सन् 904 ई. मंे आनन्द अखाड़े से निरंजनी अखाडा बना। उसके बाद सन् 1136 ई. में चारांे मठांे के नैष्टिक ब्रह्मचारियों ने श्री पंच अग्नि अखाडा बनाया। उसके 20 वर्ष के बाद आवाहन व आनन्द अखाड़े से सन् 1156 ई. में श्री पंच जूना अखाडा बना। जूना अखाडा व अग्नि अखाडा आवाहन अखाडे के साथ स्नान करता है। अग्नि अखाडा सन् 1136 से और जूना अखाडा सन् 1156 से स्नान करता है। अटल व महानिर्वाणी एक साथ स्नान करते हैं। पहले यह नियम था।
श्रीमहंत गापोल गिरि महाराज ने कहाकि सन् 547 से सन् 646 तक अकेला आवाहन अखाडा स्नान करता रहा। फिर सन् 647 से अटल अखाडा आवाहन के साथ स्नान करने लगा। फिर सन् 749 में महानिर्वाणी अखाडा स्नान करने लगा। फिर आदी शंकराचार्य जी जब अखाडे के सम्पर्क मे आये तब नियम बनाये गए। प्रथम शाही मंे आवाहन अखाड़ा आगे रहता है। आगे उसके पीछे अटल और उसके पीछे महानिर्वाणी स्नान करता है।
दूसरी शाही में अटल अखाडा आगे, उसके पीछे महानिर्वाणी और उसके पीछे आवाहन स्नान करता। तीसरी शाही मे महानिर्वाणी आगे और उसके पीछे आवाहन स्नान करता है। यह नियम शंकराचार्य जी ने बनाये। बाद मंे आनन्द के साथ निरंजनी और जूना स्नान करने लगे।
बताया कि प्रथम स्नान में आनन्द और उसके पीछे निरंजनी और उसके पीछे जूना अखाडा स्नान करता है। दूसरी शाही मंे निरंजनी आगे उसके पीछे जूना और उसके पीछे आनन्द स्नान करता था यह नियम बाद में बने। शाही स्नान तीन ही होते हैं। बाकी पर्व स्नान है। ऐसे में अखाड़ा परिषद का राग अलापना समझ से परे है। जब कुंभ के बाद अखाड़ा परिषद भंग हो गयी तो फिर कौन से अखाड़ा परिषद से वार्ता की जा रही है।


