हरिद्वार। शरद पूर्णिमा का पर्व 19 व 20 अक्टूबर को मनाया जाएगाफ। सनातन धर्म में शरद पूर्णिमा खासा महत्व है। शरद पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इसके अलावा भगवान विष्णु की पूजा करने से जीवन में धन की कमी दूर होती है। शरद पूर्णिमा पर कई मायनों में खास है। इतिहास पर नजर डालें को कई बड़ी घटनाएं इस दिन घटीं, इस कारण से भी शरद पूर्णिमा का खासा महत्व माना जाता है।
शरद पूर्णिमा को मनाए जाने को लेकर ज्योतिषाचार्य पं. देवेन्द्र श्ुाक्ल शास्त्री के मुताबिक शरद पूर्णिमा इस वर्ष 19 अक्टूबर को मनाई जाएगी। हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को ही शरद पूर्णिमा कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन आकाश से अमृत की बूंदों की वर्षा होती है। इस बार पंचांग भेद की वजह से कुछ जगहों पर 20 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा मनाई जाएगी। शरद पूर्णिमा तिथि 19 अक्टूबर शाम 7 बजे से आरम्भ होगी तथा 20 अक्टूबर रात्रि 8 बजकर 20 मिनट पर यह समाप्त होगी। इस कारण से 19 अक्टूबर को ही शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा।
उन्होंने बताया कि पौराणिक मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने शरद पूर्णिमा पर ही महारास की रचना की थी। इस दिन चंद्र देवता की विशेष पूजा की जाती है और खीर का भोग लगाया जाता है। रात में आसमान के नीचे खीर रखी जाती है। ऐसा माना जाता है कि अमृत वर्षा से खीर भी अमृत के समान हो जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां लक्ष्मी की समुद्र मंथन से उत्पत्ति भी शरद पूर्णिमा के दिन ही हुई थी। इस तिथि को धन-दायक भी माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी धरती पर विचरण करती हैं और जो लोग रात्रि में जागकर मां लक्ष्मी का पूजन करते हैं, वे उस पर कृपा बरसाती हैं और धन-वैभव प्रदान करती हैं। इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ होता है और पृथ्वी पर चारों तरफ चंद्रमा की उजियारी फैली होती है। धरती दूधिया रोशनी में चांद के प्रकाश से नहा जाती है।
उन्होंने बताया कि शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा, कोजागर व्रत और कौमुदी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। कोजागर व्रत में मां लक्ष्मी की पूजा होती है। यह त्योहार बंगाली समुदाय के लोग मनाते हैं। माना जाता है कि इस रात देवी लक्ष्मी धरती पर विचरण करती हैं। जबकि कोमुदी व्रत भगवान कृष्ण को समर्पित होता है।


शरद पूर्णिमाः जाने शुभ मुहुर्त और दिन
