बड़ा सवाल, विकास के नाम पर उत्तराखण को क्या मिला

उत्तराखंड राज्य गठन को 24 वर्ष पूरे हो गये, इन चौबीस वर्षों में आखिर इस पर्वतीय राज्य को पहाड के विकास के नाम पर क्या मिला? यह एक बड़ा अहम और यक्ष प्रशन हैं?

पहाड़ का पानी दारु ले गया, जवानी दिल्ली ले गई,
“विकास” को 40 प्रतिशत कमीशन ले गया।
पलायन पर भाषण दिल्ली में बैठे नेताजी ले गये ।
गरीब पहाड़ियों की बेशकीमती जमीनें दिल्ली, हरियाणा और पंजाब वाले ले गये।
खेती सुअर, बंदर ले गये।
नीबू माल्टा, आलू, गडेरी, गहत बाहर का व्यापारी ले गया।
और तो और उत्तराखंड के लोकगीत भी मैथिली ठाकुर ले गई।

छौरिया बाहरी बहू बन रही है। लडके नेपाली ला रहे हैं। वाह क्या बात है पहाड़ का खूब विकास हो रहा है।
प्रदेश में 206 सदानीरा नदियाँ और गदेरे सूखने के कगार पर पहुँच गये हैं। प्रकृति से मानवीय छेडछाड से उत्तराखंड के 5428 जल स्त्रोतों पर सकट मंडरा रहा है। स्प्रिंग एंड रिजुविनेशन अथारिटी (सारा) की टीम ने यह फैक्ट साझा किया है। नदियों की इस स्थिती के लिए प्रकृति कम मानवीय हस्तक्षेप ज्यादा जिम्मेदार है।

उतराखंड के लोग लगातार पलायन कर रहे हैं। पहले पहाड़ के लोगो ने टिहरी डैम में डूब क्षेत्र मे आने वाले अपने गाँवो के जाने का भावनात्मक दर्द झेला। उसके बाद रोजी, रोटी की तलाश और बेरोजगारी के कारण पर्वतीय लोग लगातार पलायन कर रहे है, पहाड पर कई गाँव लगभग खाली हो गये हैं। पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने इस पलायन पर कांग्रेस और भाजपा पर कई गम्भीर आरोप लगाये हैं। हरक सिंह रावत ने गैरसैंण को राजधानी बनाने के मुददे पर कांग्रेस और भाजपा पर गम्भीर आरोप लगाते हुये कहा है कि गैरसैंण पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राज्य के लोगों को बेबकूफ बना रहे हैं, उनका आरोप है कि जब भी गैरसैंण में सत्र बुलाया जाता है सत्तापक्ष, विपक्ष आपस में सलाह मशवरा कर सदन मे शोर शराबा कर सदन को 3 या 4 दिन में स्थगित कर देते हैं। उन्होंने कहा कि 1997 मे मेरे द्वारा गैरसैण को तहसील बनाया गया इससे पहले वह पटवारी क्षेत्र था। उन्होंने कहा कि तत्कालीन मुख्य मंत्री विजय बहुगुणा के कार्यकाल से ही वहाँ पर आजतक विकास का कोई काम नही हुआ! सभी राजनैतिक पार्टीयां गैरसैंण को लेकर चोचलेबाजी कर रही है जबकि सबसे ज्यादा पलायन इसी क्षेत्र से हो रहा है।

पूर्व कबीना मंत्री ने स्पष्ट शब्दो में कहा कि जितना प‌लायन राज्य बनने के बाद हुआ उतना तो राज्य बनने से पहले भी नहीं हुआ। राज्य बनने से पहले पहाड को मिलने वाली सुविधाएं भी खत्म हो गई। इससे अच्छी स्थिती तो राज्य बनने से पहले ही थी खैर एक बात तो शाश्वत सत्य है कि राज्य बनने के बाद बाहरी राज्यों के खनन माफिया, भूमाफिया और भ्रष्ट नौकरशाही ने इस प्राकृ‌तिक सौन्दर्य से भरपूर राज्य को कंकरीट के जंगल मे बदल कर भ्रष्टाचार की दलदल में जमकर डुबकियाँ लगायी है और आज भी जमकर लग रही हैं ।

विकास के नाम पर 40 प्रतिशत के गोरख धन्धे ने, पहाड पर मेडिकल तथा शिक्षण संस्थाँओ को पहाड पर फटकने भी नहीं दिया है, ज्यादा दूर नही जाईये अभी हाल ही में राज्य स्थापना दिवस पर जशन किसने मनाया? करोडो का बजट पासकर नेताओं और नौकरशाहों ने बन्दरबाँट की।

केदारनाथ उपचुनाव में भाजपा की आशा नौटियाल हालाँकि 5,622 मतों से विजयी हुई वहीं, निर्दलीय उम्मीदवार पत्रकार त्रिभूवन चौहान को मिले 9,000 हजार से ज्यादा मत भी बहुत कुछ कह रहे है। इससे स्पष्ट जाहिर हैं कि उत्तराखंड की जनता के सपनो को सकार करने के लिए “थर्डफ्रंट” की तीव्र आवश्यकता है। वरना काँग्रेस, भाजपा से रुष्ठ लोग “एकला चलो” की स्थिती का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि यूकेडी के प्रत्याशी को मात्र 1000 मत ही मिल पाये है। उक्रांद एक राजनैतिक ताकत नही बन पाई।

सवाल यह है कि भाजपा और काँग्रेस प्रदेश की जनता को लुभावने नारे लगाकर कब तक बरगलाते रहेंगे। काँग्रेस के एक पूर्व मुख्य मंत्री रोज उपवास के लिए बैठ जाते है, परन्तु ग्यारह सालों से खाली पड़े लोकायुक्त के पद की नियुक्ति के लिए आज तक उन्होने कोई उपवास नहीं किया। काँग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा का कार्यकाल समाप्त होने वाला है, परन्तु आज प्रदेश कार्यकारिणी का गठन नहीं हो सका।

भाजपा साम्प्रदायिकता के दम पर जिन्दा है। जंगल, सडक, नदी की जमीनें बिक रही है। खनन भूव्यवसाय का धन्धा अफसरशाही नौकरशाहो, नेताओ मंत्री, सन्तरीयों के साथ चरम पर है। पहाड़ की वादियो के इस सुन्दर राज्य में भी पर्यावरण व प्रदूषण चरम पर हैं। लोकतन्त्र को सभी दल मदिरा व धन,बल के दम पर खरीद रहे हैं। इसके लिए तत्काल राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति अति आवश्यक है।

  दरअसल 24 सालो मे उत्तराखंड की जनता को राजनीति के मकडजाल में उलझा कर मूलभूत सुविधाओं और मुद्दों से दूर किया गया हैं।

गैरसैण में धामी सरकार के संकट का आभास देखते हुये एक निर्दलीय विधायक ने धामी सरकार को 500 करोड़ खर्च कर सदन को भंग करने का आरोप लगाकर सदन में सनसनी पैदा कर दी थी। यह आज भी प्रश्न बना हुआ है कि यह प्रश्न धामी सरकार को अभयदान देना था या कुछ और? सरकारी खुफिया ऐजेन्सीयाँ भी इस मुद्दे पर किसी निर्णय पर नहीं पहुंची मामला टॉय टॉय फिस्स हो गया।

इससे पहले पूर्व मुख्य मंत्री भुवन चन्द्र खण्डूरी सरकार के एक कैबिनेट मंत्री पर बाबा रामदेव ने दो करोड रुपये रिश्वत मांगने का गम्भीर आरोप लगाया था। परन्तु वह मंत्री कौन थे? रामदेव के पास क्या प्रमाण थे? यह भी आज तक अनसुलझा हुआ प्रश्न है! गुप्तचर एजेसियाँ भी कुछ नहीं कर पाई। इसमे पहले धामी की सरकार को भी अस्थिर करने की कोशिश की गई थी। उससे पहले खण्डूरी को हटाकर रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्य मंत्री बनाया गया, फिर वर्तमान सासंद त्रिवेन्द्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया परन्तु आलाकमान को दिल्ली दरबार मे कुछ जानकारियाँ मिलने पर उन्हे हटाकर तीरथ सिह रावत को उत्तराखंड के मुख्य मंत्री का ताज पहनाया गया परन्तु वह भी शीघ्र ही पार्टी गुटबाजी के मकडजाल में उलझ कर रूसखत हो गये। सूत्रों की माने तो आजकल एक पूर्व मुख्य मंत्री की पुत्री जो वर्तमान सरकार के संचालन का अहम हिस्सा है वह धामी सरकार के खिलाफ कई बार दिल्ली दरबार में दस्तक दे चुकी हैं। बुनियादी मुददे और राज्य की समस्त विकराल समस्याएं तो फिलहाल दफन हो गई है।

जहाँ 24 सालों में काँग्रेस का शासनकाल गुटबाजी मे उलझा रहा और आपस में ही आरोप प्रत्यारोप के दांव पेंच में फंसा रहा।

वहीं भाजपा ने राज्य के स्थापना के 24 सालों में मात्र मुख्य मंत्रियो को ही बदलने का खेल खेलकर इस पर्वतीय राज्य को अफसरशाही और नौकरशाहों की लूट खसोट का मार्ग प्रशस्त किया। यदि आज भी निष्पक्ष जांच हो जाये तो हमाम में अधिकांश कई विधायक, मंत्री, सन्तरीयों और अफसरों का गठजोड नंगा मिलेगा।

उत्तराखंड के जो लोग जमीनो के स्वामी थे वह आज उन्ही जमीनो पर धन कुबेरो की बडी बडी अट्टालिकाओ में नौकरी कर रहे है। राज्य की जनता के लिए इससे बड़ी त्रासदी और क्या होगी?

                   डॉ. रमेश खन्ना
                    वरिष्ठ पत्रकार
                     हरिद्वार

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