टाइप-1 व टाइप-2 डायबिटीज में अंतर! ये क्या होता है और क्यों होता है, जानिये

मधुमेह मुख्यतः अनियमित जीवनशैली, खानपान में अनियमितता, शारीरिक सक्रियता की कमी का परिणाम होता है। यह दो प्रकार का होता है। टाइप-1 और टाइप-2।

डायबिटीज दो प्रकार होता है टाइप-1 और टाइप-2

टाइप-1 डायबिटीज में इंसुलिन का बनना कम हो जाता है या फिर इंसुलिन बनना बंद हो जाता है और इसे काफी हद तक नियंत्रण किया जा सकता है। जबकि टाइप-2 डायबिटीज से प्रभावित लोगों का ब्लड शुगर का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ जाता है जिसको नियंत्रण करना बहुत मुश्किल होता है। टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज एक ही जैसा नहीं होता है, इन दोनों में बहुत अंतर होता है।

टाइप-1 डायबिटीज
इस प्रकार के डायबिटीज में पैन्क्रियाज की बीटा कोशिकाएं पूरी तरह से नष्ट हो जाती हैं और इस तरह इंसुलिन का बनना सम्भव नहीं होता है।
यह जेनेटिक, ऑटो-इम्यून एवं कुछ वायरल संक्रमण के कारण होता है, इसके कारण ही बचपन में ही बीटा कोशिकाएं पूरी तरह से नष्ट हो जाती हैं। यह बीमारी सामान्यतया 12 से 25 साल से कम अवस्था में देखने को मिलती है। स्वीडन और फिनलैण्ड में टाइप-1 डायबिटीज का प्रभाव अधिक है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार भारत में 1 से 2 प्रतिशत मामलों में ही टाइप-1 डायबिटीज की समस्या होती है।

टाइप-2 डायबिटीज
टाइप-2 मधुमेह से ग्रस्त लोगों का ब्लड शुगर का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ जाता है जिसको नियंत्रण करना बहुत मुश्किल होता है। इस स्थिति में पीडि़त व्यक्ति को अधिक प्यास लगती है, बार-बार मूत्र लगना और लगातार भूख लगना जैसी समस्यायें होती हैं। यह किसी को भी हो सकता है, लेकिन इसे बच्चों में अधिक देखा जाता है। टाइप-2 मधुमेह में शरीर इंसुलिन का सही तरीके से प्रयोग नहीं कर पाता है।

टाइप-1 किसे हो सकता है
टाइप-1 मधुमेह किसी को भी बचपन में किसी भी समय हो सकता है, यहां तक कि अधिक उम्र या शैशव अवस्था में भी यह हो सकता है। लेकिन टाइप-1 मधुमेह बीमारी आमतौर पर 6 से 18 साल से कम अवस्था में ही देखने को मिलती है। यानी यह ऐसी बीमारी है जो बच्चों में होती है। हालांकि मधुमेह के इस प्रकार से ग्रस्त लोगों की संख्घ्या बहुत कम है, भारत में 1 से 2 प्रतिशत लोगों में ही टाइप 1 डायबिटीज होती है।

टाइप-2 किसे हो सकता है
वर्तमान में व्यायाम के अभाव और फास्ट फूड के अधिक सेवन के कारण बच्चों में भी टाइप-2 डायबिटीज होने लगी है।
15 साल के नीचे के लोग, खासकर 12 या 13 साल के बच्चों में यह दिखाई दे रही है। पुरुषों के मुकाबले यह महिलाओं में अधिक हो रही है। यह बीमारी उन लोगों को अधिक होती है जिनका वजन अधिक होता है। आनुवांशिक कारणों से भी यह हो सकता है।

टाइप-1 के लक्षण
टाइप-1 डायबिटीज में शुगर की मात्रा बढ़ने से मरीज को बार-बार पेशाब आता है, शरीर से अधिक तरल पदार्थ निकलने के कारण रोगी को को बहुत प्यास लगती है। इसके कारण शरीर में पानी की कमी भी हो जाती है, रोगी कमजोरी महसूस करने लगता है, इसके अलावा दिल की धड़कन भी बहुत बढ़ जाती है।

टाइप-2 के लक्षण
इसके कारण शरीर में ब्लड शुगर का स्तर बढ़ने से थकान, कम दिखना और सिर दर्द जैसी समस्घ्या होती है। चूंकि शरीर से तरल पदार्थ अधिक मात्रा में निकलता है इसकी वजह से रोगी को अधिक प्यास लगती है। कोई चोट या घाव लगने पर वह जल्दी ठीक नहीं होता है। डायबिटिज के लगातार अधिक बने रहने का प्रभाव आंखों की रोशनी पर पड़ता है, इसके कारण डायबिटिक रेटिनोपैथी नामक बीमारी हो जाती है जिससे आंखों की रोशनी में कमी हो जाती है।

मधुमेह से बचाव
मधुमेह की रोकथाम के लिए इंसुलिन दिया जाता है।
इंसुलिन एक तरह का हॉर्मोन है, जो हमारे शरीर के लिए बहुत उपयोगी है।
इंसुलिन के जरिए ही रक्त कोशिकाओं को शुगर मिलती है, यानी इंसुलिन शरीर के अन्य भागों में शुगर पहुंचाने का काम करता है।
इंसुलिन द्वारा पहुंचाई गई शुगर से ही कोशिकाओं को ऊर्जा मिलती है।
अब आपको यह पता चलेगा कि मधुमेह रोग क्या होता है!

अगर ठीक होना चाहते हैं तो सम्पर्क करें|

Dr. (Vaid) Deepak Kumar
Adarsh Ayurvedic Pharmacy
Kankhal Hardwar aapdeepak.hdr@gmail.com
9897902760

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