भारत में अनादि काल से है पटाखों की परम्परा, पुराणों में भी है उल्लेख

हरिद्वार। दीपावली आते ही पटाखों के जलाने को लेकर बहस छिड़ जाती है। कोई असके पक्ष में बयान वीर बन जाते है। तो कोई इसके विरोध में। तर्क दिया जाता है कि भारत में पटाखा नहीं होता था। किन्तु यह सत्य नहीं है। पटाखों का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। उस काल में पटाखों को उल्का भी कहते थे।
इस संबंध में भारतीय प्राच्य विद्या सोसायटी के संस्थापक ज्योतिषाचार्य पं. प्रतीक मिश्रपुरी के मुताबिक एक उल्का वह होती है जो आकाश से गिरती है। परन्तु हाथ की उल्का पटाखा है। उनके मुताबिक पटाखा शब्द उसकी ध्वनि के अनुसार बना है। एक राजा का नाम भी उल्कामुख था। बताया कि आतिशबाजी में जो चक्र चलता है, उसे आलात-चक्र कहते थे। माण्डूक्य उपनिषद् की एक व्याख्या का नाम आलात-शान्ति है, अर्थात् एक बिन्दु की गति से चक्र का आभास।
दीपावली में आतिशबाजीः- स्कन्द तथा पद्म पुराण में दीपावली उत्सव का वर्णन है। असुर राजा बलि इसी दिन पाताल गये थे, उस उपलक्ष्य में दीपावली का पालन होता है। सन्ध्या को स्त्रियों द्वारा लक्ष्मी पूजा के बाद दीप जलाए जाते हैं तथा उल्का (आतिशबाजी) करनी चाहिये। श्री मिश्रपुरी के मुताबिक उल्का तारा गणों के प्रकाश का प्रतीक है। आधी रात को जब लोग सो जायें तब जोर से शब्द होना चाहिये (पटाखा) जिससे अलक्ष्मी भाग जाये। विस्फोटक को बाण कहते थे और इनकी उपाधि ओडि़शा में बाणुआ तथा महाबाणुआ है। ओडि़शा के क्षत्रियों की उपाधि प्रुस्ति का भी यही अर्थ है। (प्रुषु दाहे, पाणिनीय धातु पाठ, 1/467)
तिथितत्त्वे अमावास्या प्रकरणे-
तुलाराशिं गते भानौ अमावस्यां नराधिपः। स्नात्वा देवान् पितन् भक्त्या संयुज्याथ प्रणम्य च। कृत्वा तु पार्वणश्राद्धं दधिक्षीरगुड़ादिभिः। ततो ऽपराह्ण समये घोषयेन्नगरे नृपः। लक्ष्मीः संपूज्यतां लोका उल्काभिश्चापि वेष्ट्यताम।

इसके अतिरिक्त अन्य ग्रंथों में भी पटाखो ंको उल्लेख है।
भारत मञ्जरी (1/890)-प्रकाशिताग्राः पार्थेन ज्वलदुल्मुक पाणिना।
स्कन्द पुराण (2/4/9)- त्वं ज्योतिः श्री रवीन्द्वग्नि विद्युत्सौवर्ण तारकाः। सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपज्योतिः स्थिते नमः। ८९घ्
या लक्ष्मीर्दिवसे पुण्ये दीपावल्यां च भूतले। गवां गोष्ठे तु कार्तिक्यां सा लक्ष्मीर्वरदा मम। 90 दीपदानं ततः कुर्यात्प्रदोषे च तथोल्मुकम। भ्रामयेत्स्वस्य शिरसि सर्वाऽरिष्टनिवारणम।91
पद्म पुराण (6/122)-त्वं ज्योतिः श्री रविश्चंद्रो विद्युत्सौवर्ण तारकः। सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपज्योतिः स्थिता तु या। 23।
या लक्ष्मीर्दिवसे पुण्ये दीपावल्यां च भूतले। गवां गोष्ठे तु कार्तिक्यां सा लक्ष्मीर्वरदा मम। 24।
शंकरश्च भवानी च क्रीडया द्यूतमास्थितौ। भवान्याभ्यर्चिता लक्ष्मीर्धेनुरूपेण संस्थिता। 25।
गौर्या जित्वा पुरा शंभुर्नग्नो द्यूते विसर्जितः। अतोऽयं शंकरो दुःखी गौरी नित्यं सुखे स्थिता। 26।
प्रथमं विजयो यस्य तस्य संवत्सरं सुखम। एवं गते निशीथे तु जने निद्रार्ध लोचने। 27।
तावन्नगर नारीभिस्तूर्य डिंडिम वादनैः। निष्कास्यते प्रहृष्टाभिरलक्ष्मीश्च गृहां गणात। 28।

पुराणों के आधार पर पटाखा हमारी संस्कृति में पुरातन काल से है। बस केवल समय के हिसाब से इसके नाम में परिवर्तन हुआ है।

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