अब सन्यास लेने वालों की होगी परीक्षा, सवाल परीक्षा लेगा कौन! पथ से भटकों के लिए क्या होगी व्यवस्था।

हरिद्वार। नियम-कानून समय के साथ परिवर्तित होते रहते हैं। समय के मुताबिक जब जिस प्रकार के कानून की आवश्यकता होती है उसी के मुताबिक उसे अमल में लाया जाता रहा है। चाहे संविधान हो या फिर समाज, समय के मुताबिक बदलाव होते रहे हैं। अब श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी भी अपने अखाड़े में बदलाव लाने जा रहा है। श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी संन्यास परम्परा में एक नया तथा महत्वपूर्ण कदम अखाड़ा उठाने जा रहा है। पंचायती अखाड़ा श्रीनिरंजनी संन्यास लेने वालों के लिए अब साक्षात्कार लेने और शैक्षिक योग्यता जांचने की व्यवस्था करने जा रहा है। अखाड़े के नियमों के मुताबिक सब कुछ सही पाए जाने के बाद व्यक्ति को संत परंपरा में शामिल किया जाएगा। अखाड़े में इसको लेकर प्रस्ताव तैयार कराया जा रहा है।

सोमवार को अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के सचिव श्रीमहंत रविंद्र पुरी ने अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी से इस बारे में चर्चा की। बताया जा रहा है कि अखाड़े में एक कमेटी बनाई जा रही है। संन्यास ग्रहण करने से पहले व्यक्ति को कमेटी के आगे पेश होना होगा। कमेटी की हरी झंडी मिलने पर आचार्य महामंडलेश्वर संन्यास ग्रहण कराएंगे। कमेटी संन्यास ग्रहण करने वाले व्यक्ति से अभी तक किए गए कार्यों के साथ ही मठ-मंदिर की जानकारी भी ली जाएगी। धर्म की जानकारी के साथ ही ज्ञान को भी परखा जाएगा। संन्यासी, महंत, श्रीमहंत और महामंडलेश्वर के लिए अलग-अलग शैक्षिक योग्यता होगी। शैक्षिक योग्यता पूरी होने पर कमेटी साक्षात्कार लेगी। इससे पहले सभी दस्तावेजों की जांच भी की जाएगी। निरंजनी अखाड़ा जल्द इस पर निर्णय लेने वाला है।

यदि ऐसा होता है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। वहीं महत्वपूर्ण सवाल यह की संन्यास लेने के लिए किस प्रकार की योग्यता आवश्यक है। किताबी ज्ञान या फिर अध्यात्म से परिपूर्ण या चरित्र का पक्का व्यक्ति। यदि व्यक्ति किताबी ज्ञान से परिपूर्ण है और चरित्रवान नहीं है तो फिर उसे कैसे संन्यासी कहा जा सकता है। वहीं संत बनने के लिए किसी ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती। कथा-प्रवचन करने वालों के लिए धर्म शास्त्रों का ज्ञान आवश्यक है, किन्तु संन्यासी बनने के लिए वैराग्य, चरित्र, भक्ति आदि की आवश्यकता अधिक महत्पवूर्ण है। वर्तमान में कुछ ऐसे भगवाधारी भी हैं, जो किताबी ज्ञान से परिपूर्ण कहे जा सकते हैं, किन्तु मोह माया में बुरी तरह से फंसे हुए हैं। वहीं बड़ा सवाल यह कि नए संन्यासियों के लिए तो परीक्षा देना आवयक किया जाएगा, किन्तु जिन्होंने संन्यास लिया हुआ है और अपने पथ से भटके हुए हैं, उनके लिए क्या गाइड लाइन तैयार की जाएगी। क्या नियमों के विरूद्ध कार्य करने वाले मठाधीशों के खिलाफ कोई कार्यवाही किए जाने जैसा नियम बनाया जाएगा। अखाड़ों की सम्पत्तियों को बेचने वाले, दूसरों की सम्पत्तियों को हडपने वालों के लिए भी कोई कानून होगा। भगवाधारण करने के बाद सुरा-सुदरी में लिप्त रहने वालों को क्या संन्यास से बाहर का रास्ता दिखाए जाने जैसा नियम बन सकेगा। परीक्षा कौन लेगा। उसकी विद्धता क्या होगी, यह भी बड़ा सवाल है। कारण की जिन भगवाधारियों को पारस और प्रेयस मंत्र के अंतर तक का ज्ञान नहीं है यदि वे परीक्षा लेते हैं तो समझ लिजिए की कैसे नव संन्यासी देखने को मिलेंगे।
उधर श्री पंचायती अखाड़ा जूना के संरक्षक व अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामत्री हरिगिरि महाराज निरंजनी अखाड़े के इस प्रस्ताव से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि शैक्षिक योग्यता संन्यासी होने के लिए आवश्यक नहीं हैं।
उनकी बात सत्य भी है, कारण की आज भी पुराने ऐसे सैंकड़ों साधु हैं जो अपना नाम भी टूटी-फूटी हिन्दी में लिखते हैं। किन्तु उनकी शैक्षिक योग्यता भले ही कम हो, किन्तु उनका चारित्र पाक साफ है औरवे आज भी तप को महत्व देते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *