गुरुपूर्णिमा की पूजा, परमात्मा के दिव्य चैतन्य की पूजा करना है: शिवकृपानंद स्वामी

ध्यानस्थली, मोरबी में तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय गुरुपूर्णिमा महोत्सव आयोजित
गुरु की महिमा अपरंपार है। हमारे शास्त्रों में भी गुरु की महिमा का वर्णन किया गया है। कहा जाता है गुरु बिन ज्ञान न उपजे यानी गुरु के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता है। गुरु-शिष्य परंपरा को भारतीय अध्यात्म का आधार स्तंभ माना जाता है। गुरुपूर्णिमा शिष्य के जीवन का विशेष दिन होता है। हिमालयीन सद्गुरु स्वामी शिवकृपानंद के सान्निध्य में ध्यानस्थली, मोरबी में तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय गुरुपूर्णिमा महोत्सव का आयोजन किया गया। इसका तीन दिवसीय आयोजन 9 से 11 जुलाई के दौरान किया गया। तीन दिवसीय कार्यक्रम का शुभारंभ श्री शिवकृपानंद स्वामी फाउंडेशन के निर्देशक अम्बरीष मोडक, समर्पण आश्रम ट्रस्ट के ट्रस्टी अश्विन कोडियातर, आश्रम प्रबंधक श्रीमती कोकिला काकडि़या, कार्यक्रम के अध्यक्ष किरण पवार और ध्यानस्थली, मोरबी की पूर्व ट्रस्टी श्रीमती जिग्ना गोहिल द्वारा दीप प्रज्वलन करके किया गया। गुरुपूर्णिमा महोत्सव में देश-विदेश से 2500 से भी अधिक साधक उपस्थित थे।


हिमालयीन ध्यानयोग की 25वीं गुरुपूर्णिमा के अवसर पर स्वामीजी ने ध्यान, सेंटर पर ध्यान का महत्त्व, ध्यान में नियमितता तथा परमात्मा और गुरुपूजा आदि विषयों के बारे में बताया। ध्यान के विषय पर बताते हुए स्वामीजी ने कहा कि गुरुपूर्णिमा पर सबसे महत्वपूर्ण है गुरुपूजा। गुरुपूजा गुरु के शरीर की पूजा नहीं है, बल्कि उस शरीर में से प्रवाहित होने वाले चैतन्य की पूजा है। यदि आप गुरु को शरीर मानते हैं तो वह शरीर है, लेकिन यदि आप उनके भीतर स्थित चौतन्य का अनुभव करते हैं तो आपको परमात्मा का अनुभव होगा। अतः गुरुपूर्णिमा की पूजा परमात्मा के परम चौतन्य की पूजा है। स्वयं को आत्मा और गुरु को परमात्मा मानकर गुरुपूजा में भाग लिया जाए, तभी यह सर्वश्रेष्ठ पूजा है। कार्यक्रम के पहले दिन उस्मान मीर और आमिर मीर द्वारा संतवाणी और गुरुभजन प्रस्तुत किए गए।


दूसरे दिन उपस्थित सभी साधकों ने स्वामीजी के प्रवचन का और तत्पश्चात् गुरुपूजा एवं पादुका नमन का लाभ उठाया। दूसरे सत्र में सभी ने गुरुमाँ की मधुर वाणी में प्रवचन का लाभ लिया, जिसमें उन्होंने प्रार्थना, पारिवारिक एकता जैसे अनेक मूल्यों को समझाया। तीसरे और अंतिम दिन सभी साधकों ने स्वामीजी के सान्निध्य में प्रातःकालीन सामूहिक ध्यान का लाभ उठाया। तीसरे दिन का अंतिम सत्र प्रश्नोत्तरी का सत्र था, जिसमें साधकों ने शिवकृपानंद स्वामीजी से अपने आध्यात्मिक प्रश्नों के समाधान प्राप्त किया।


शिवकृपानंद स्वामी फाउंडेशन के निर्देशक अम्बरीष मोडक ने आश्रम, संगठन और साधकों की प्रगति के लिए विकल्पों के साथ-साथ ध्यान एप और टेक्नोलॉजी के उपयोग पर चर्चा की। तीन दिनों के अंत में साधकों ने ऊर्जा, अनुभूतियों और आध्यात्मिक यादों के साथ विदाई ली।


गुरुपूर्णिमा के दिन भारत के विभिन्न ध्यानस्थली और विदेशों में समर्पण आश्रमों के माध्यम से लाखों साधक ऑनलाइन जुड़े थे।
गुरुपूर्णिमा के स्थल पर ध्यानस्थली, मोरबी क्षेत्र के पक्षीजगत की एक सचित्र प्रदर्शनी और अध्यात्म की पाँच पादान के विषय में भी एक प्रदर्शनी लगाई गई।

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