शिवकृपानंद स्वामीजी का 69वाँ प्रागट्य दिन भव्यता के साथ मनाया गया

गुजरात समर्पण आश्रम, महुडी में चैतन्य महोत्सव का आयोजन
हिमालय के महर्षि शिवकृपानंद स्वामी के प्रागट्य दिन को साधक चैतन्य महोत्सव के रूप में मनाते हैं। इस तरह 8 नवंबर के दिन गुजरात समर्पण आश्रम, महुडी में चैतन्य महोत्सव बहुत भाव से मनाया गया। शिवकृपानंद स्वामी ने चैतन्य का अर्थ समझाते हुए बताया कि चैतन्य यानी प्राणशक्ति, निसर्ग के सान्निध्य में जाने के बाद हमें जो महसूस होता है और चैतन्य पाने के बाद जो अच्छा लगता है वही प्राणशक्ति है।

नवंबर को आश्रम में चैतन्यपूर्ण वातावरण में एक-दिवसीय यह कार्यक्रम रहा। स्वामीजी के जन्मदिन को यादगार बनाने के लिए साधकों में बहुत उत्साह रहता है।
दोपहर से गुजरात तथा देश भर से साधकों का आगमन शुरू हो गया था। भारतीय संस्कृति को प्रदर्शित करते कार्यक्रम के द्वारा और महोत्सव की यादगार भेंट देकर साधकों का चंदन तिलक से स्वागत किया गया था। स्वामीजी के प्रवचन और और ध्यान के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। स्वामीजी ने कहा की कोई अज्ञात सुख की इच्छा के लिए व्यक्ति जीवन भर प्रयत्नशील रहता है। एक ऐसे सुख की कल्पना की जो सुख प्राप्त करने बाद जीवन में प्राप्त करने को कुछ बाकी ही न रहे, वह पाने के लिए व्यक्ति प्रयत्न करता है, यह सुख कब मिलेगा, कैसे मिलेगा उसका उसे कोई ख्याल नहीं है। मन में एक कल्पना होती है और यही सुख पाने के लिए व्यक्ति जीवन भर कार्य करता है। जब कोई बड़े सुख की शोध करते हैं तब वो सुख प्राप्त नही होता है, परंतु छोटे-छोटे जो सुख मिलते हैं उसी में व्यक्ति खुश हो जाता है।

परमात्मा की प्राप्ति के बारे में स्वामीजी ने बताया, परमात्मा की प्राप्ति मुझे मिल गई है, ऐसे भाव के कारण आपके अंदर सहन करने की शक्ति खूब बढ़ जाती है और कोई संकट आए या मुश्किल आए तो आप सहन कर सकते हो। क्योंकि आप यह सोचोगे कि साक्षात परमात्मा मेरे भीतर है। मैंने परमात्मा को पा लिया है। परमेश्वर मेरे ही अंदर है। परमात्मा कोई एक रास्ता बंद करता है तो दूसरे 10 रास्ते खोल देता है, ऐसे सकारात्मक विचार के कारण जीवन की तरफ देखने का दृष्टिकोण बदल जाता है। ऐसे ही परमात्मा एक सकारात्मक शक्ति है। दूसरा, आपको आपकी आध्यात्मिक स्थिति कैसी है यह जानना हो तो पूरे दिन में आप सब बातों को कैसे सरलता के साथ स्वीकार करते हो यह सोचो। जो भी स्थिति आती है उसका स्वीकार करो। उसमें से कोई-न-कोई रास्ता मिल जाएगा। उसके बाद स्वामीजी के सान्निध्य में सामूहिक ध्यान का लाभ लिया। ध्यान करने के बाद बच्चों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का स्वामीजी और गुरुमाँ के साथ प्रश्नोत्तरी वीडियो के रूप में प्रस्तुत हुई।

स्वामीजी का आगमन हाथी की सवारी पर और गुरुमाँ तथा गुरुपरिवार का रथ पर आगमन हुआ। प्रथम गुजराती गरबा बहनों द्वारा प्रस्तुत हुआ, हाथ में मशाल लिए साथ चलते पगड़ीधारी युवा और अंत में सिर पर गरबी और जवारे के साथ बांधनी में सज्ज बहनें चल रही थीं। वह दृश्य अनुपम था। स्वामीजी के आगमन के बाद हिमालय ध्यान संस्कार ग्रहण करने के प्रारंभ से अभी तक की गुरुदेव की आध्यात्मिक यात्रा को लेसर शो के रूप में प्रस्तुत किया। उसके बाद स्वामीजी की साधकों के भाव रूपी रजत तुला की गई। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की थीम पर बनाई गई मिठाई साधकों को प्रसाद के रूप में दी गई।इस कार्यक्रम में डॉक्टर साधकों द्वारा हॉलिस्टिक काउंसलिंग कैंप का आयोजन किया गया था। ‘प्रकृति ही परमात्मा’ थीम आधारित महोत्सव, सुशोभन और गुरु वचनों के पोस्टर एक सुंदर आकर्षण बन गए थे।

इस कार्यक्रम में 5500 से भी ज्यादा साधकों ने बड़े उत्साह से भाग लिया। कार्यक्रम के अंत में गुरुपुत्र अम्बरीष के नेतृत्व में भविष्य में होने वाली व्यवस्था के रूप में मेटावेर्स के उपयोग की जानकारी दी गई। पूरे कार्यक्रम को सफल बनाने में गुरुकार्यरत साधकों की मेहनत रंग लाई। पूरे कार्यक्रम का जीवंत प्रसारण गुरुतत्त्व की यू ट्यूब चैनल पर किया गया था। जिसका लाभ देश-विदेश के साधकों ने लिया।

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