मदन कौशिक की कुण्डली में स्वामी व संजय दोष लोकप्रियता में कमी का कारण

हरिद्वार। कोई जीतकर भी फिस्सडी साबित हुआ और कुछ हारकर भी सिकंदर बन गए। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने भले ही प्रचंड बहुमत से जीत दर्ज की, लेकिन बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन चुनाव जीतने के बाद भी उत्साहित नजर नहीं आ रहे हैं। पुष्कर सिंह धामी के चुनाव हारने के बाद लोगों में खासकर मदन कौशिक समर्थकों में उत्साह था कि मदन इस बार सीएम बन जाएंगे। किन्तु हुआ इसके विपरीत। पांच बार लगातार विधायक बनने तथा कई अहम् मंत्रालयों का कामकाज संभालने वाले मदन कौशिक को केबिनेट में जगह तक नहीं मिली। अब सियासी गलियारों में भी चर्चा हो रही है कि मदन कौशिक प्रदेश अध्यक्ष रहेंगे या नहीं? ऐसा क्यों हो रहा है। चर्चा फिर जोर पकड़ रही है कि प्रदेश अध्यक्ष को बदला जा सकता है। कारण की गढ़वाल व कुमांऊं में मदन कौशिक के चाहने वालों की कमी। साथ ही उत्तराखण्ड की राजनीति में क्षेत्रवाद को भी मुख्य वजह बताया जा रहा है। हालांकि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पिछले दिनों प्रदेश में किसी भी प्रकार के बदलाव से इंकार कर चुके हैं, बावजूद इसके परिर्वतन की चर्चा तेज होती जा रही है।
उत्तराखंड में भाजपा नेताओं में सबसे अनुभवी नेताओं का अगर नाम आता है तो मदन कौशिक उनमें से एक हैं। लेकिन पार्टी के अंदर का एक धड़ा उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद पर अब पसंद नहीं कर रहा है।
मदन कौशिक को विधानसभा चुनावों से पहले प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद चुनावों में उनके ऊपर जो आरोप लगाए थे कहीं न कहीं वह भी मदन कौशिक की राजनीति पर ग्रहण का काम करने लगे हैं। मदन कौशिक के खिलाफ माहौल तब बना जब विधानसभा चुनाव के नतीजे भी नहीं आए थे, कि लक्सर विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे संजय गुप्ता ने जैसे ही मतदान हुआ, अपनी हार स्वीकार कर ली। उन्होंने सीधे प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक का नाम लेते हुए उनके ऊपर कारवाई करने और भीतरघात का आरोप मढ़ दिया। संजय गुप्ता ने मदन कौशिक की इतनी मुखालफत की कि उनके आरोपों के बाद अंदरखाने कई विधायकों ने मदन कौशिक के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। संजय गुप्ता के अलावा पूर्व मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद, सतपाल महाराज के बीच भी पुरानी अदावत चली आ रही है। कई मौकों पर इन्होंने मदन कौशिके खिलाफ मोर्चा भी खोला और अपना शक्ति प्रदर्शन तक किया। हरिद्वार जनपद से साल 2017 के चुनावों के मुकाबले भाजपा का इस बार प्रदर्शन काफी खराब रहा। आरोप यह लगा कि पार्टी के ही बड़े नेताओं ने प्रत्याशियों को हराने का काम किया है। इन सबको देखते हुए मदन की कुण्डली में मानों यह किसी दोष से कम साबित नहीं हो रहे हैं।
संजय गुप्ता ने उस समय यह आरोप लगाया था कि शहजाद, मदन कौशिक के बेहद करीबी हैं और चुनावों में उन्होंने अपने आदमी भेज कर मुझे हराने का काम किया है। संजय गुप्ता ने तो मदन कौशिक पर यह आरोप तक लगा दिए थे कि प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक की संपत्ति की भी जांच होनी चाहिए। इतना ही नहीं स्वामी यतीश्वरानंद ने भी चुनाव प्रचार के दौरान ही आरोप लगाया था कि प्रदेश अध्यक्ष के पारिवारिक सदस्य नरेश शर्मा को जानबूझकर आम आदमी पार्टी में शामिल किया गया है। वोट काटने के लिए उन्हें हरिद्वार ग्रामीण से चुनाव लड़वाया गया। इसके साथ ही कुमाऊं और गढ़वाल के तमाम नेताओं ने आरोप लगाया कि प्रदेश अध्यक्ष अपनी ही सीट पर विधानसभा चुनावों में अटक कर रह गए। इसका खामियाजा पार्टी को कई सीटों पर भुगतना पड़ा। ऐसे में अब संगठन इस बात पर भी विचार कर रहा है कि साल 2024 में होने वाले चुनावों में अगर हरिद्वार के यही हालात रहे तो कहीं ऐसा न हो कि जिस सीट पर अभी बीजेपी के सांसद रमेश पोखरियाल निशंक हैं, उस सीट से भी बीजेपी को हाथ ना धोना पड़े। ऐसे में संगठन आने वाले समय में गढ़वाल में बदलाव करने पर विचार कर रहा है। हालात यह है कि मदन र्कौशिक भले ही प्रदेश अध्यक्ष हैं, लेकिन उन्हें उस तरह से तवज्जो नहीं दी जा रही है। मदन और संगठन के बीच भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। इसका उदाहरण विगत दिनों हरिद्वार में देखने को मिला। जब तीन दिनों तक लगातार मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कार्यक्रम रहे, किन्तु सभी में मदन कौशिक व उनके समर्थकों ने दूरी बनाए रखी। जिस कारण से जहां पार्टी में कलह खुलकर दिखायी दी वहीं मदन कौशिक की रेटिंग में भी इससे कमी आयी। अब चर्चा है कि पार्टी प्रदेश अध्यक्ष पर किसी अन्य की ताजपोशी करने की सोच रही है। ऐसे में गढ़वाल और कुमांऊं के बीच संतुलन साधते हुए किसी नए चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जा सकती है। वहीं पहाड़ और मैदान के बीच संतुलन बनाने के लिए भाजपा तीन बची सीटों में से एक मंत्री पद मदन कौशिक को दे सकती है। किन्तु जिस प्रकार से मदन कौशिक को लेकर असंतोष है, इसकी भी संभावना कम ही नजर आ रही है।

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