हरिद्वार। प्रयागराज में अखाड़ा परिषद में आपस में हुए विवाद को लेकर के काली सेना का मानना है कि इस प्रकार के विवाद समाज में और हिंदू धर्माचार्यों के प्रति एक गलत संदेश देंगे । यदि कोई बात थी तो प्रशासन के कार्यालय में आपस में बैठकर के निपटा लेना चाहिए इन अखाड़ों का काम अब केवल जमीन हथियाना और जमीन के लिए लड़ना, पद के लिए लड़ना रह गया है।
स्वामी आनन्द स्वरूप ने कहा कि अब एक व्यक्ति इतने लंबे समय से एक पद पर बने चले आ रहे हैं उनको बदलना चाहिए। दूसरों को अवसर देना चाहिए, लेकिन नहीं यदि वह सत्ता चली गई तो बड़ी वाली जमीन मिलेगी। नहीं फिर व्यापार चलेगा, नहीं तो प्रशासन को चाहिए और जिस प्रदेश का मुख्यमंत्री स्वयं संत हो उसको स्वयं आगे आना चाहिए और नए अखाड़ा परिषद का गठन करना चाहिए। क्योंकि यह दोनों अखाड़ा परिषद आपस में लड़ रहे हैं और लगातार लड़ रहे हैं। कुंभ कराना संकट खड़ा हो जाएगा। यदि नए अखाड़ा परिषद का गठन नहीं हुआ तो । स्वामी आनन्द स्वरूप ने कहा कि मैं फिर से कह रहा हूं इन दोनों अखाड़ा परिषदों की वैधता वैसे तो यह दोनों अवैध है। दोनों का कोई पंजीकरण नहीं है, इसलिए तीसरे को इस कुंभ में मान्यता दीजिए, ताकि यह जो झगड़ा हैं आपस में वो दूर हो सके
स्वामी आनन्द स्वरूप ने मुख्यमंत्री से मांग कि की आज जो आपस में झगड़ा हुआ और जो भी इस झगड़े के लिए जिम्मेदार हैं उनके ऊपर कानूनी कार्रवाई हो और इन झगड़ों में अच्छे धर्माचार्य को भी आना चाहिए, नहीं तो झगड़ा और बढ़ते रहेंगे। यह चौराहे से फिर सड़क पर आएंगे इन सब झगड़ों में प्रशासन के लोग लोग भी केवल लड़ाने का काम करते हैं ।
स्वामी आनन्द स्वरूप ने कहा कि 1998 के बाद यह पहला ऐसा कुंभ होने जा रहा है, जिसमें प्रारंभिक समय में ही इस तरह का हिंसक संघर्ष हो गया। अब देखना है कि मुख्यमंत्री जी क्या निर्णय लेते हैं, लेकिन हमारी यह मांग फिर से रहेगी कि इन दोनों अखाड़ा परिषदों को भंग करके एक तीसरी अखाड़ा परिषद की रचना करिए और उसकी विधि पूर्वक मान्यता दीजिए। जब तक विधिपूर्वक मान्यता नहीं होगी तब तक यह लड़ाई झगड़े चलते रहेंगे।
जमीन, जायदाद, पद, पैसा के लिए लड़ाइयां चलती रहेगी, क्योंकि इन लोगों के पास कोई काम नहीं है। जब बिधर्मियों से लड़ने का समय आता है तो बिल में जाकर घुस जाते हैं। कहीं कोई नागा साधु आजकल किसी विधर्मी से लड़ते हुए नहीं दिखता है ।
आज जमीन के लिए लड़ते हुए दिखता है पद के लिए लड़ते हुए दिखता है तो मैं फिर से कह रहा हूं कुंभ कराना प्रशासन का काम है। यदि अखाड़ा परिषद की आवश्यकता ना हो तो अखाड़ा परिषद को समाप्त कर दीजिए। यदि आवश्यकता है तो एक नई अखाड़ा परिषद को जन्म दीजिए।