हरिद्वार। सिद्धपीठ श्री सूरत गिरि बंगला गिरिशानंदाश्रम में कथा व्यास स्वामी विश्वस्वरूपानंद गिरि महाराज के श्रीमुख से चल श्रीमद् देवी भागवत पुराण कथा के छठे दिन कथा व्यास ने मां भगवती की अनेकों लीलाओं का वर्णन किया। इससे पूर्व उन्होंने महिषासुर की उत्पत्ति व मां भगवती द्वारा उसके संहार की कथा का बड़ा ही अलौकिक वर्णन किया।

बंगले के परमाध्यक्ष महामण्डलेश्वर आचार्य स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरि महाराज के सानिध्य में चल रही कथा का श्रवण कराते हुए स्वामी विश्वस्वरूपानंद गिरि महाराज ने कहाकि आषाढ़ मास में पड़ने वाले गुप्त नवरात्रि व श्रीमद् देवी भागवत कथा श्रवण का विशेष महत्व है। इस दिन मां त्रिपुर भैरवी की पूजा का विधान है। मां त्रिपुर भैरवी अहंकार का नाश करने वाली मानी जाती है। उन्होंने कहा कि दुर्गा सप्तशती के अनुसार त्रिपुर भैरवी के उग्र स्वरूप की कांति हजारों उगते सूर्य के समान है। माता त्रिपुर भैरवी की उत्पत्ति मां महाकाली के छाया विग्रह से ही हुई है।
देवी भागवत के अनुसार छठी महाविद्या त्रिपुर भैरवी हैं। मां त्रिपुर भैरवी के विभिन्न प्रकार के भेद माने गए हैं। मां त्रिपुर भैरवी की साधना एकांत में की जाती है। देवी त्रिपुर भैरवी को बंदीछोड़ माता भी कहा गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गुप्त नवरात्रि में मां त्रिपुर भैरवी की पूजा करने से सभी प्रकार के कानूनी मामलों, कारावास, रोगों से मुक्ति मिलती है। करियर और कारोबार में वृद्धि होती है। मां भगवती समस्त पापों का नाश करने वाली हैं।