वेदों के ज्ञान को संजोए रखने की आवश्यकताः विश्वेश्वरानंद

संस्कृत के विद्वानों का सूरतगिरि बंगला आश्रम में किया सम्मानित


हरिद्वार।
श्री सूरत गिरि बंगला गिरिशानंद आश्रम में चल रहे अतिरूद्र महायज्ञ के दौरान शनिवार को वैदिक विद्वानों को सम्मानित किया गया। यज्ञ की पूर्णाहुति 8 अप्रैल को होगी। बता दें कि 29 मार्च को दक्षिण भारतीय वैदिक विद्वानों के आचार्यत्व में अतिरूद्र महायज्ञ का शुभारम्भ हुआ था।


इस अवसर पर अपने आशीवर्चन देते हुए आश्रम के परमाध्यक्ष महामण्डलेश्वर आचार्य स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरि महाराज ने विद्वानों को सम्मानित करते हुए वैदिक संस्कृति के संरक्षण के महत्व पर प्रकाश डाला। कहा कि वेद हमारी मूल जड़ हैं और वैदिक परंपरा को जीवित रखना ही हमारा परमदायित्व है। उन्होंने कहाकि आधुनिक समय में लोग इस विचार से विमुख नहीं हो सकते कि वेदों में निहित सच्चाइयां संजोए जाने योग्य नहीं हैं। वेद ज्ञान का भण्डार हैं। इसलिए, यह विचार कि हमें वेदों में निहित सत्य को समझना और प्रचारित करना चाहिए।

आश्रम की प्राचीन परंपरा रही है कि वैदिक मार्ग, वेद अध्ययन, वैदिक यज्ञ अनुष्ठान मंे रत रहना अपना निज धर्म समझता है। यही आश्रम का मूल बीज है। जिसका आश्रम प्राचीन काल से रक्षण करता आ रहा है। उन्होंने कहाकि संस्कृत सबसे प्राचीन भाषा है और यह पूर्णतया वैज्ञानिक भाषा है। उन्होंने कहाकि संस्कृत में जो लिखा जाता है, वहीं बोला जाता है। जबकि अन्य किसी भाषा में ऐसा नहीं है। उन्होंने वहां मौजूद वेदपाठी छात्रों से मन लगाकर विद्याध्ययन करने और अपनी वैदिक सनातन संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने में योगदान देने के लिए प्रेरित किया। इस अवसर पर समारोह का शुभारम्भ वेदपाठी छात्रों द्वारा मंगलाचरण से किया गया।


कार्यक्रम में प्रो. भोला झा पूर्व प्राचार्य, भगवान दास, आदर्श संस्कृत महाविद्यालय, प्रो निरंजन मिश्र भगवान दास, आदर्श संस्कृत महाविद्यालय, डॉ ओम प्रकाश भट्ट, डॉ शैलेश कुमार तिवारी, डॉ हरीश चन्द्र तिवाड़ी, डॉ कंचन तिवारी, डॉ अरुण कुमार मिश्र, डॉ दामोदर परगांई, सभी उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार, गौरव शास्त्री संस्कृत भारती, प्रो शिवशंकर मिश्र, आचार्य बालकृष्ण त्रिपाठी श्री स्वामी महेश्वरानन्द सांगवेद संस्कृत महाविद्यालय को नगद धनराशि, अंगवस्त्र आदि देकर सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर कोठारी स्वामी उमानंद गिरि, स्वमी विश्वस्वरूपांनंद गिरि महाराज, स्वामी प्रदीप गिरि, स्वामी कमलानंद गिरि, स्वामी वल्लभदास, आचार्य शिवपूजन, सुधीर तिवारी समेत संस्कृत के छात्र व आश्रमस्थ संत व विद्यार्थी मौजूद रहे।

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