निरंजनी अखाड़े के कई साधुओं की जीवन के अंतिम काल में हुई दुर्दशा

कोई गायब हुआ, किसी ने फांसी लगायी जो किसी ने खाया जहर
हरिद्वार।
गोस्वामी तुलसीदास महाराज द्वारा रचित श्री राम चरित मानस का एक-एक शब्द ज्ञान का अपार सागर है। मानस को अनेक लोग पढ़ते हैं, किन्तु उसके मर्म को कोई-कोई ही जान पाता है। साथ ही उस ज्ञान पर कोई-कोई ही अमल करता है।
मानस में गोस्वामी जी ने एक चौपाई में लिखा है कि जो जस करहीं सो तस फल चाखा। अर्थात जो जैसा करता है उसका परिणाम उसको अवश्य ही भुगतना पड़ता है। ऐसा ही निरंजनी अखाड़े के कुछ संतों के साथ जीवन के अंतिम समय में हुआ। उनकी दुर्दशा हुई या दुर्दशा के लिए मजबूर किया गया। तपोनिधि श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी के एक वरिष्ठ संत ने बताया कि बड़ौदरा स्थित निरंजनी अखाड़े के सचिव धनराज गिरि महाराज के साथ भी ऐसा हुआ। वे बडौदरा से पैसे लेकर हरिद्वार रेल द्वारा वर्ष 2008-09 में आ रहे थे। रास्ते में से ही वे लापता हो गए, उनका आज तक कुछ पता नहीं चल पाया। इसके साथ निरंजनी अखाड़े के सचिव व अखाड़ा परिषद के पूर्व अध्यक्ष रहे श्रीमहंत शंकर भारती जी को मंशा देवी ट्रस्ट व अखाड़े से जीवन के अंतिम समय में बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। अंतिम काल में वे धनाभाव के चलते अपना ईलाज कराने में भी असमर्थ रहे। उनके शिष्यों व सरकार की मदद से उनका इलाज हुआ और वे इधर-उधर भटकते रहे। वहां भीं कुछ संतों ने उन्हें चैन से नहीं रहने दिया और उनकी मृत्यु हो गयी। श्रवणनाथ मठ के श्रीमहंत रामकिशन गिरि को भी मठ से बाहर निकाला दिया गया। जिस कारण वे ग्वालियर चले गए और वहीं उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। ईश्वर भारती को जहर देकर मार दिया गया। जयदेव भारती को अखाड़े से बाहर का रास्ता दिखाया गया। उन पर चरित्रहीनता का आरोप लगा। वहीं वीरभद्र ऋषिकेश में रहने वाले इन्द्र पुरी महाराज का शव भी फांसी के फंदे पर झूलता मिला था। वहीं शंकर भारती महाराज को बाहर निकालने वाले रामानंद पुरी की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। इसके साथ ही मृत्यु के बाद नरेन्द्र गिरि के गुरु भाई अम्बिका पुरी के शव को कुत्तों ने नोंच खाया। जबकि इसी वर्ष कुंभ के दौरान शराब पीकर एक संत के संतों के बीच आने से मना करने पर साधु रामानंद गिरि को अखाड़े के कुछ संतों ने जमकर पीटा जिस कारण उसको आंतरिक रूप से गंभीर चोंटें आयीं और कनखल स्थित रामकृष्ण मिशन अस्पताल में उन्हें भर्ती होना पड़ा, जहां उनकी मौत हो गयी। स्वामी रामानंद की मौत के बाद कोई भी उनके शव को लेने के लिए नहीं पहुंचा। जिस कारण से सन्यास परम्परा के विरूद्ध उनका कनखल में अग्नि संस्कार किया गया। हां इतना जरूर हुआ की अखाड़े से मारपीट क रनिकालने के बाद जहां उन्होंने शरण ली उस आश्रम पर भी दबाव बनाकर उन्हें वहां से निकलवा दिया गया। दूसरे आश्रम में जाकर उन्होंने शरण ली। उनकी मृत्यु के बाद उनका संस्कार तो नहीं किया किन्तु उनका झोला लेने के लिए अखाड़े के दो साधु वहां पहुंच गए। स्वामी रामानंद के झोले में उन संतों को केवल दो सौ रुपये मिले। संत ने बताया कि जिन-जिन संतों के साथ संतों ने गलत आचरण किया उनके अंतिम समय में परिणाम उनके सामने आए।

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