आपरेशन कालनेमि, कैसे हो पहचान, हरिद्वार में अपने ऐशोआराम के लिए भगवान की बोली लगाने वाले क्या कालनेमि नहीं

हरिद्वार। फजी बाबाओं की धरपकड़ के लिए प्रदेश सरकार द्वारा शुरू किए गए आपरेशन कालनेमि का आज तीसरा दिन है। अभी तक पुलिस द्वारा आपरेशन के तहत अभी तक देहरादून और हरिद्वार जनपद में पांच दर्जन फर्जी बाबाओं को गिरफ्तार किया जा चुका है। इनमें सात गैर हिन्दू शामिल हैं। हरिद्वार की श्यामपुर थाना पुलिस ने 18 बाबाओं को पकड़ा हैं, जिनमें सपेरा जाति और शनि का दान मांगने वाले शामिल हैं। शनि का दान मांगने का उनका कार्य वर्षों पुराना है। ऐसे में सवाल उठता है कि आपरेशन कालनेमि के तहत फर्जी बाबाओं की पहचान के क्या मानक हैं।


क्या जो साधु नहीं हैं, उन्हें भगवा पहनने का अधिकार नहीं है। क्या जो भगवा धारण किए हुए हैं, उनमें कालनेमि नहीं हैं। इसके संबंध में आपरेशन कालनेमि में कोई स्पष्ट गाइड लाईन नहीं दी गयी है। बस भिक्षावृत्ति करने वालों में से जिसे भगवा पहने देखो गिरफ्तार कर लो, जो की आपरेशन कालनेमि पर बड़ा सवाल है।


धर्मशास्त्र के दृष्टिगत देखें तो भगवा धारण करने का संन्यासी के अतिरिक्त किसी को अधिकार नहीं हैं। सरकार ऐसे लोगों पर कार्यवाही करते हुए यदि उन्हें गिरफ्तार कर रही है तो उसे गलत भी नहीं ठहराया जा सकता, किन्तु जो भगवा धारण किए मठों में कालनेमि छिपे हुए हैं, उनके खिलाफ सरकार क्या ऐक्शन लेगी, लेगी भी या नहीं इस संबंध में कोई स्पष्ट निर्देश नहीं दिया गया है।


तीर्थनगरी हरिद्वार में सैंकड़ों आश्रम-अखाड़े हैं, जहां सैंकड़ों की संख्या में भगवाधारी निवास करते हैं। इनमें न जाने कितने कालनेमि भगवा की आड़ लिए बैठे हुए हैं। जिन पर संगीन आरोप हैं और उन्हें पूजा भी रहा है। पूजने वालों में सरकार के मंत्री, नेता भी शामिल हैं।

क्या इन्हें कालनेमि नहीं कहा जाएगा।
हरिद्वार में फर्जी शकराचार्य बनकर बैठे हुए भगवाधारी को क्या कालनेमि नहीं कहा जाएगा, जो सनातन के साथ मजाक कर रहा है और नेता, मंत्री उसके दरबार में आए दिन माथा टेकते हैं। ऐसे में क्या आपरेशन कालनेमि सरकार की मंशा को सिद्ध कर पाएगा।

कई ऐसे भगवाधारी हैं, जो प्रतिवर्ष अपने मठों के मंदिरों में विराजमान भगवान की बोली लगाते हैं। यानि की मंदिरों को लाखों रुपये में ठेके पर दिया जाता है। क्या भगवान की बोली लगाना एक सनातनी, वह भी भगवाधारी के लिए शास्त्रोक्त कहा जा सकता है। क्या ऐसे लोग कालनेमि की श्रेणी में नहीं आते जो भगवान को बाजार की वस्तु बना रहे हैं और बोली से आने वाली लाखों रुपये की धनराशि से ऐश उड़ा रहे हैं।

दर्जनों ऐसे भगवाधारी हैं, जिन पर संगीन आरोप हैं और मुकदमें दर्ज हैं। क्या ये कालनेमि नहीं।

दर्जनों ऐसे हैं, जो भगवा धारण करने के बाद भी भू व्यवसाय व रियल स्टेट का कारोबार कर रहे हैं।

भगवा धारण करने के लिए शादीशुदा जीवन यापन करने वालों को क्या कालनेमि की संज्ञा नहींे दी जानी चाहिए।

जो आचार्य महामण्डलेश्वर, मण्डलेश्वर बनाने के नाम पर लाखों रुपये लेते हैं, क्या वह कालनेमि नहीं।

कुछ भगवा धारी ऐसे भी हैं जो किसी के भी पक्ष-विपक्ष में धरना-प्रदर्शन करने के लिए पैसा लेते हैं। उनके संबंध में क्या कहा जाएगा।

बलात्कार का प्रयास, अपहरण, हत्या और धोखाधड़ी जैसे संगीन आरोपों के आरोपियों को क्या कालनेमि की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए।

दूसरों की सम्पत्ति पर कब्जा करना, उसे बेचने वाले, भगवा धारण करने के बाद महिलाओं को भगा ले जाकर शादी करने वाले और फिर तपस्वी संत बने रहने वालों को क्या कालनेमि की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए।

केवल ऐशोआराम के लिए भगवा धारण करने, भण्डारा खाने तक अपने जीवन को सीमित रखने वालों का क्या कहा जाना चाहिए।

लोगों का कार्य करवाने के लिए दलाली के रूप में पैसे लेने वाले क्या संत कहलाने के हकदार हो सकते हैं।

इजाल के नाम पर लोगों से ठगी कर लाखों रुपये ऐंठने वालों को क्या कहा जाए। शराब और मांस का सेवन करने वाले मठाधीशों को कालनेमि की संज्ञा क्या नहीं दी जानी चाहिए।

पैसा लेकर गैर ब्राह्मण को आचार्य महामण्डलेश्वर जैसे पदों पर आसीन करने वाले क्या कालनेमि नहीं हैं।

ऐसे अनेक उदाहरण और मामले हैं, जो सरकार के आपरेशन कालनेमि पर सवालिया निशान लगाते हैं। वैसे आपरेशन कालनेमि को सभी सही बता रहे हैं, किन्तु व्यवहार समान होना चाहिए। भिखारियों को पकड़कर बड़ी मछलियों पर कार्यवाही करने की बजाय उन्हें प्रश्रय देने पर आपरेशन कालनेमि की सार्थकता को सिद्ध नहीं किया जा सकता।

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