हरिद्वार। आस्था के हजार होते रंग हैं। जिसको जो भा जाए वह उसी में रम जाता है। कोई ध्यान लगाकर परमात्मा को भजता है तो कोई जप और तप के करण उसको मनाने का कार्य करता है। मार्ग कोई भी हो सब जाकर उसी पर पहुंचते हैं। उस तक पहुंचने के लिए सबसे अधिक जरूरत जिस चीज की होती है वह है आस्था। यदि आस्था नहीं है तो कुछ भी करना व्यर्थ है।
फिलहाल कांवड़ यात्रा अपने चरम पर है। चारों ओर भगवा ही भगवा नजर आ रहा है। तीर्थनगरी इस समय पूरी तरह से भगवामय हो चुकी है। लगातार कांवडि़यों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। ऐसे में कांवडि़यों के साथ कांवड़ के भी अनेक रूप देखने को मिल रहे हैं। कोई ऊंची कांवड़ ले जाकर प्रसन्न है तो कोई राम मंदिर, केदारनाथ धाम की प्रतिकात्मक कांवड़ ले जा रहा है। किसी ने मोर पंखों की कांवड़ सजायी हुई है तो कोई 100 रुपये के नोटों वाली डेढ़ करोड़ की कांवड़ ले जाकर भगवान शिव के प्रति अपनी आस्था को प्रकट कर रहा है। कोई अपने-माता-पिता को कांवड़ में ले जाकर मस्त है। कुल मिलाकर हर कोई इस समय भगवान शिव की भक्ति में लीन है।
इन सबसे अलग एक कांवडि़यां ऐसा भी है, जो अपना रक्त बहाकर भगवान शिव के प्रति जहां अपनी अटूट आस्था को प्रकट कर उन्हें पाने की कोशिश कर रहा है। जी हां एक कांवडि़ए ने भगवान के प्रति अपनी अटूट आस्था को प्रकट करते हुए अपने कंधों पर कील गाड़कर कांवड़ ले जाने का उदाहरण प्रस्तुत किया है। कांवडि़ए ने अपने दोनों कंधों पर कील गाड़कर उसमें कांवड़ बाधंी हुई है और वह उसे खंींचकर सैंकड़ों किलोमीटर दूरी तय कर अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान कर चुका है।
कांवडि़ए के शरीर से कील गाड़ने के कारण रक्त बह रहा है। साथी कांवडि़ए उसका बहने वाला रक्त समय-समय पर साफ कर रहे हैंं। किन्तु शिव भक्त कांवडि़या अपनी मस्ती में मस्त होकर भोले के द्वार की ओर उनका जलाभिषेक करने के लिए दौड़ा चला जा रहा है। भगवान शिव के प्रति उसकी इस प्रकार की आस्था को देखकर सभी अचंभित हैं।