प्रयागराज। कुंभ को विचारों के मंथन का महापर्व कहा गया है। किंतु वर्तमान में विचारों के मंथन के अलावा अधिकांश संत, महात्मा भंडारा खाने में ही मस्त हैं। कुछ धन कमाने में मस्त हैं। किंतु धर्म के उत्थान व युवा पीढ़ी को मार्गदर्शन करने जैसा कुछ नहीं है।
महाकुंभ के आयोजन में लगे शिविरों में विभिन्न प्रकार के प्रवचन कथाओं का आयोजन हो रहा है। ऐसे ही एक शिविर में वर्तमान के मुद्दों पर मंथन होता दिखाई दिया, जिसमें जिज्ञासुओं में यह प्रश्न किया कि कुंभ में आने वाले हिंदुओं का धर्म क्या है। क्या हमारा हिंदू धर्म है। क्या हम सनातन धर्म से हैं या हमारा धर्म वैदिक धर्म है। उन्होंने कुंभ में आए सभी संत, महंत, मंडलेश्वर, आचार्य, शंकराचार्य और अन्य विद्वानों से इस संबंध में अपील करते हुए कहा कि कृपया हमें बताया जाए कि हमारा धर्म क्या है। धर्म के लक्षण क्या है। धर्म का अनुसरण करने से क्या लाभ हैं। धर्म की सार्वभौमिकता के संबंध में भी वे अवगत कराएं। इसके संबंध में काफी देर तक चर्चा चली किंतु वहां उपस्थित कोई भी विद्वान इसका सटीक और प्रामाणिक उत्तर नहीं दे पाया। अब देखना होगा कि विद्वान इसके संबंध में क्या राय रखते हैं।