बेहतर होता की संत समाज गिरधर नारायण पुरी महाराज से कुछ सीख लेता!

कोई भी अध्यक्ष बना, किन्तु रार में पलीता संत समाज को लगा
हरिद्वार।
संतों की रार रूकने का नाम नहीं ले रही है। अब दो अखाड़ा परिषद हो चुकी हैं और दोनों ही बहुमत से चुने जाने का दावा कर रही हैं। दोंनो ही अपने को बहुमत के आधार पर असली भी कह रही है। अखाड़ा परिषद के दोनों धड़े अपने साथ सात अखाड़ों का बहुमत होने का दावा कर रहे हैं। ऐसे में असली कौन और नकली कौन शायद इसका फैसला अब कोर्ट में ही होने की संभावना है।
वहीं प्रयागराज में हुई बैठक में परिषद की जिस खेमे ने सात अखाड़े अपने समर्थन में होने का दावा किया है, उसमें निर्मल और बैरागियों के निर्मोही अखाड़े के समर्थन की बात कही जा रही है। बता दें कि जिस निर्मल अखाड़े के संत रेशम सिंह का समर्थन होने का दावा किया जा रहा है, निर्मल अखाड़े मंे वह कभी पदाधिकारी था ही नहीं और वर्ष 2019 में रेशम सिंह समेत 11 लोगों के खिलाफ कनखल थाने में एफआईआर अखाड़े की ओर से दर्ज करायी हुई है। वहीं निर्माेही अखाड़े के समर्थन की बात है तो बैरागी अखाड़ों के तीनों सम्प्रदायों के श्रीमहंतों का दावा है कि हमारा किसी भी प्रकार का समर्थन नहीं है। एक बैरागी संत ने बताया कि अखाड़ा परिषद की बैठक में अखाड़ों के अध्यक्ष और सचिव को ही वोट देने का अधिकार है, ऐसे में कोई भी संत जाकर समर्थन देने का दावा करे तो उसके कोई मायने नहीं हैं।
वहीं पद को लेकर रार के कारण भले की संतों को परिषद में पद मिल गए हों, किन्तु समाज में इस कलह के कारण संतों की साख में गिरावट आयी है। नाम न छापने की शर्त पर एक सन्यासी संत ने बताया कि बेहतर होता की संत समाज अपने पूर्वजों से कुछ सीख लेता। उन्होंने बताया कि पूर्व में श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के सचिव श्रीमहंत गिरधर नारायण पुरी महाराज को अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष बनाया जा रहा था। सभी उनके नाम पर सहमत भी थे, किन्तु अंतिम समय में जब उनको अध्यक्ष बनाने की घोषणा की जा रही थी तभी उन्होंने उठकर निरंजनी अखाड़े के सचिव श्रीमहंत शंकर भारती महाराज के गले में माला पहनाकर कहा कि आप ही अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष बनंे, अब मेरी तो उम्रं्र हो चुकी है। उन्होंने बताया कि ऐसी त्याग की मिशाल कम मिलती हैं और यही वास्तविक संत का आचरण भी है। यदि महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव महंत रविन्द्रपुरी महाराज को अध्यक्ष चुन भी लिया गया था तो सभी को साथ मिलकर विवाद का समाप्त कर दिया जाना चाहिए था। जबकि महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव के नेतृत्व वाली अखाड़ा परिषद में चारों सम्प्रदाय के संत हैं। उनके मुताबिक अब मामला असली-नकली को लेकर कोर्ट में जाएगा और वहां जो कुछ भी होगा फजीहत केवल संत समाज की ही होगी।

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