कुंभ पर भय और राजनीति का साया

भय के कारण गरजने वालों ने मिमयाना भी छोड़ा
प्रयागराज। प्रयागराज में कुंभ का आगाज हो गया है। अव्यवस्थाओं के बीच प्रथम शाही स्नान भी सम्पन्न हो गया। मुख्य शाही स्नान मौनी अमावस्या का 29 जनवरी को होना है। इसके लिए प्रशासन सभी पुख्ता इंतजाम करने के दावे कर रहा तो संत स्नान की व्यवस्थाओं को लेकर अंदरखाने चिंतित हैं। स्नान कैसा होगा यह समय ही बताएगा, किन्तु इतना तय है कि कुंभ में राजनीति और भय का माहौल व्याप्त है। राजनीति किसी और की नहीं सतों की, खासकर अखाड़ों की राजनीति और संतों में व्याप्त भय कुंभ पर हावी दिखायी दे रहा है।

दबी जुबान से हो रहा विरोध
कुंभ के प्रथम स्नान पर व्यवस्थाओं का बोलबाला रहा। स्नान के दौरान मची भगदड़ के कारण कई चोटिल हुए व कई को जान गंवानी पड़ी। बावजूद इसके मीडिया में कहीं यह सब सुर्खियोें में नहीं आया। नजीता रहा कि अव्यवस्थाओं के चलते स्नान के दिन ही उदासीन संतों को संगम घाट पर धरना देने को बाध्य होना पड़ा।
वहीं अव्यवस्थाओं के लेकर संन्यासियांे में भी रोष देखने को मिला। अधिकांश संत व्यवस्थाओं को लेकर सरकार को कोसते दिखायी दिए, किन्तु प्रत्यक्ष रूप से कोई बोलने को तैयार नहीं हुआ। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि सरकार का संतों में कितना भय है।

बयानवीरों की बोलती हुई बंद
समय-समय पर हर बात पर बयान देने वाले अखाड़ों के कुछ बयानवीर आजकल चुप हैं। या यूं कहें की वह अडरग्राउंड हैं। कारण की यदि वे कुछ बोलते हैं तो उन पर मुसीबतों का पहाड़ गिरना तय है। इस कारण से बयानवीर न तो अखाड़े से निकल रहे हैं और न ही कोई बयान दे रहे हैं। जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार के चाबुक का इन पर कितना असर है। अपने कारनामों के कारण इनको चुप रहने की सलाह दी गई है। यही कारण है कि अब तब गरजने वालों ने मिमयाना भी बंद कर दिया है।

कुंभ पर पड़ा अखाड़ा परिषद के दो गुटों के बीच हुए विवाद का असर
अखाड़ा परिषद के दो गुटों के बीच मेला आरम्भ होने से पूर्व हुए विवाद का असर कुंभ मेले पर स्पष्ट दिखायी दे रहा है। इसकी बानगी इस बार प्लाट आबंटन में देखने को मिली। प्लाट आबंटन में कुछ संन्यासी अखाड़ों को घेरने की रणनीति के तहत यह कार्य किया गया। जिस कारण वे चाहकर भी कुछ बोल नहीं पा रहे हैं।
यदि अखाड़ा परिषद के दोनों गुटों के बीच विवाद न हुआ होता तो स्थिति कुछ और होती। इस कारण अंदरखाने रोष से भरे कुछ संत चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। यही कारण है कि जिन संतों को मेला क्षेत्र में अंदर स्थान दिख जाता था, वे वर्तमान में मुख्य मार्गों के आसपास बसाए गए हैं।

एक-दूसरे से श्रेष्ठ साबित करने की मची होड़
सनातन की दुहाई देने वाले संतों के बीच स्वंय को श्रेष्ठ साबित करने की होड़ मची हुई है। कोई मॉडल को साथ लेकर स्वंय को बड़ा साबित करना चाह रहा है तो कोई अपना वैभव दिखाकर दूसरों पर अपना प्रभाव डालने की कोशिश में है। कोई कुछ न होते हुए भी दूसरे के समर्थन में आकर उसके गुणगान करने में लगा हुआ है। स्नान पर्व के दौरान सामने आई अव्यवस्थाओं का ठीकरा भी दूसरों पर फोड़ने की कोशिश जारी है। जबकि प्रशासन के खिलाफ कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं। यह सब अपने बचने के लिए चाटुकारिता की हदें पार करने जैसा है। सत्य बोलने का उपदेश देने वालों की कैमरे के समाने कुछ बोलने की हिम्मत नहीं हो रही है। बस अपने बचने के लिए सरकार और प्रशासन का गुणगान करने में लगे हुए हैं।

संतई से सनातन के ठेकेदारों का नहीं कोई वास्ता
कुंभ मेले में सनातन के कथित भगवाधारी ठेकेदारों का संतई से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। उनका केवल एक ही ध्येय है कि कैसे माल इकट्ठा किया जाए और कैसे अपना प्रभाव जमाया जाए। शास्त्र की दुहाई देने वालों के द्वारा अधिकांश कार्य शास्त्र के विरूद्ध किए जा रहे हैं। अयोग्य को महामण्डलेश्वर, जगद्गुरु बनाया जा रहा है। जिस संन्यासी के लिए स्वर्ण धारण करना निषेध बताया गया है वह लाखों का सोना धारण कर अपना महिमामण्डन करने में लगे हुए हैं। सुबह से शाम तक भण्डारा खाना और माल इकट्ठा करना ही इनका मुख्य उद्देश्य बनकर रह गया है। मीडिया के समक्ष कैमरे पर कुछ भगवाधारी ऐसे उपदेश देने में माहिर है कि इनके जैसा श्रेष्ठ और सिद्ध संत दूसरा और कोई नहीं है।

वर्तमान में रोष की ज्वाला अंदरखाने धधक रही है। मेले के दौरान किसी भी प्रकार का बयान चाह कर भी देने की हिम्मत कुछ लोग नहीं जुटा पा रहे हैं, किन्तु इतना तय है कि आने वाले समय में बयानों के द्वारा कुछ बड़ा होना तय है। जिनकी उपेक्षा की जा रही है और जिन्हें दोयम दर्जे को संतों के द्वारा ही समझा जा रहा है। वह निश्चित ही आने वाले समय में कुछ बड़ा धमाका कर सकते हैं। जिस कारण से कुछ लोगों को अपना मुंह छिपाने को मजबूर होना पड़ सकता है।

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