अखाड़ा परिषदः……..टूटा 17 वर्षों का तिलिस्म

हरिद्वार। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के दो फाड़ हो जाने के साथ ही परिषद के पूर्व महांमत्री हरिगिरि महाराज का 17 वर्षों से परिषद के महामंत्री पद पर बने रहने का तिलिस्म टूट चुका है। परिषद के दो फाड़ होते ही उनके अरमान भी टूट गए हैं। सूत्र बताते हैं कि हरिगिरि महाराज किसी भी कीमत पर महामंत्री का पद छोड़ना नहीं चाहते थे। जबकि अन्य संत उनको महामंत्री पद पर अब और अधिक समय तक देखना नहीं चाहते थे। हालांकि अखाड़ा परिषद की 25 अक्टूबर को प्रयागराज में बैठक होना तय थी, किन्तु दीपावली के बाद बैठक कराए जाने की घोषणा के बाद दूसरे दिन बैठक का समय बदल दिए जाने सें संतों में और अधिक रोष उत्पन्न हो गया था। वहीं एक अन्य कारण बैरागी संतों में हरिगिरि महाराज के प्रति नाराजगी। वैसे हरिगिरि महाराज के प्रति नाराजगी का एक कारण यह कि बैठक से बैरागी सतों को दूर रखने की उनकी रणनीति। यदि बैठक में बैरागी संत शामिल होते तो एक पद जाना तय था। या तो उनको मनचाहे व्यक्ति के स्थान पर अध्यक्ष पद पर बैरागी संतों को स्वीकार करना पड़ता या फिर उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ता। इन दिनों ही परिस्थितियों के लिए वे तैयार नहीं थे। इस कारण से अखाड़ा परिषद दो फाड़ होने की कगार पर पहुंची। यदि निरंजनी अखाड़े के ही संत को अध्यक्ष बनाने की बात न उठती तो हो सकता था कि अखाड़ा परिषद दो फाड़ होने से बच जाती। सूत्र बताते हैं कि निरंजनी के संत को अध्यक्ष बनाने के लिए हरिगिरि महाराज पूरी तरह से रणनीति को अमलीजामा पहनाने में जुटे हुए थे। यह बात अन्य संतों को नागवार लगी। सूत्र बताते हैं कि अन्य संत अध्यक्ष पद पर खुला चुनाव कराने व बैरागी संतों को साथ लेने के पक्ष में थे। यदि खुला चुनाव होता तो भी रणनीति का विफल होना तय था। कारण की संत समाज अपनी उपेक्षा के कारण नाराज था। इन सभी कारणों के चलते अखाड़ा परिषद दो फाड़ हुई और इसी के साथ 17 वर्षों से महामंत्री पद पर चला आ रहा हरिगिरि महाराज का वर्चस्व भी समाप्त हो गया।

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