हरिद्वार। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत नरेन्द्र गिरि महाराज ने बयान दिया है कि परिवार से जुड़े और मोह-माया में फंसे संतों को अखाड़े से बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा। उनका यह बयान सनातन परम्परा को मजबूत करने वाला बयान कहा जा सकता है। किन्तु सवाल उठता है कि यदि बयान पर अमल किया जाए तो कितने संत मौजूदा हालात में बच पाएंगे।
वर्तमान के चकाचैंध वाले व विलासितापूर्ण जीवन में अधिकांश लोग व संत फंसे हुए हैं। ऐेसे संतों की काफी तादात है जिनका अपने परिवार से संबंध है और भगवा धारण कर कमायी से अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। मोह माया से दूर रहने का उपदेश देने वाले आज किस प्रकार से मोहमाया के वशीभूत हैं यह सर्वविदित है। विलासितापूर्ण जीवन शैली भी सभी के सामने है। स्वंय के पास अकूत सम्पदा होते हुए भी मोहमाया से दूर रहने की बात करने वालों की लम्बी फेहरिस्त है। इतना ही नहीं संन्यास लेने के बाद भी व्यापार भगवाधारियों के द्वारा संचालित किया जा रहा है। कोई प्राॅपर्टी डीलिंग का कार्य कर रहा है तो कोई बहुमंजिला इमारतें खड़ी कर बेचने का व्यवसाय कर रहा है। अखाड़ों की जमीनों का क्या हाल हो रहा है, यह भी किसी से छिपा नहीं है। प्रत्येक कुंभ में सरकार से जमीन आबंटन की मांग की जाती है और अखाड़ों की जमीनों को बेचने का सिलसिला लगातार जारी है। जहां कभी अखाड़ों की जमात आकर ठहरा करती थीं वहां आज बड़ी-बड़ी इमारतें बनी हुई हैं। ऐसा किसी एक अखाड़े का नहीं बल्कि कई अखाड़ों का हाल है। परिवार से संबंध रखने वालों को अखाड़े से बाहर करने के साथ अखाड़ों की सम्पत्ति को बेचने वालों, प्रापर्टी डीलर, अर्पाटमेंट का व्यवसाय करने वालों को भी संतों की जमात से बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए। जब संन्यास लेने के बाद पुनर्जन्म हो ही गया तो फिर परिवार से संबंध रखने के साथ मोहमाया के पीछे भागना और व्यवसाय करना भी शास्त्रों में संन्यासी के लिए निषेध बताया गया है। यदि संन्साय परम्परा के हिसाब से छटनी की जाए तो बिरला की संत दिखायी देगा।