आयुर्वेदिक सिद्धांतों के अनुसार सही समय पर भोजन करना, उचित मात्रा और प्रकार का चयन करना, और मन को केंद्रित रखना मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इन सिद्धांतों का पालन करके हम न केवल अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं, बल्कि मानसिक शांति और संतुलन भी प्राप्त कर सकते हैं।
भारत की प्राचीन चिकित्सा प्रणाली आयुर्वेद के अनुसार, जीवन को स्वस्थ और संतुलित रखने के लिए भोजन अत्यधिक महत्वपूर्ण है। भोजन को न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी आधारभूत तत्व माना गया है। चरक संहिता में बताया गया है कि भोजन ही प्राण है और एक आदर्श आहार से ही संतोष, पोषण, बल, और मेधा (बुद्धिमत्ता) की प्राप्ति होती है।
सदियों पहले चरक संहिता में बता दिया गया था- 100 साल जीना है तो इस समय खाना खाएं! भोजन का सही समय, मात्रा, और प्रकार हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं। चलिए जानते हैं कि आयुर्वेद में भोजन करने का सही तरीका और समय क्या है।
आयुर्वेद में भोजन के लिए आठ प्रमुख नियम
आयुर्वेद में भोजन के लिए आठ प्रमुख नियम
1. प्रकृति:
भोजन की एक विशेष प्रकृति या गुण होता है, जैसे हरी मूंग हल्की होती है, जबकि काली उड़द भारी होती है।
2. करण:
भोजन को तैयार करने की विधि, जिससे भोजन की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
3. संयोग:
भोजन के सही संयोजन, जैसे दूध के साथ असंगत खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए।
4. राशि:
भोजन की मात्रा, जो उचित पोषण और स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
5. देश:
भोजन उगाने का स्थान, क्योंकि मिट्टी और जलवायु इसके गुणों को प्रभावित करते हैं।
6. काल:
भोजन का समय, जिसमें दिन-रात के आधार पर भोजन की मात्रा और प्रकार का चयन किया जाता है।
7. उपयोग संहिता:
भोजन करने के नियम, जो सही पाचन और रोगों से बचाव के लिए आवश्यक हैं।
8. उपयोक्ता:
भोजन करने वाला व्यक्ति, जिसकी शारीरिक और मानसिक स्थिति पाचन और भोजन की प्रभावशीलता को प्रभावित करती है।
आदर्श भोजन समय:
द्वि अन्नकाल का महत्व
आदर्श भोजन समय: द्वि अन्नकाल का महत्व
आयुर्वेद में स्वस्थ जीवन के लिए आदर्श भोजन का समय दिन में दो बार है, जिसे “द्वि अन्नकाल” कहा जाता उपहै। प्राचीन समय में लोग इसी समय तालिका का पालन करते थे, लेकिन आजकल तीन बार भोजन करना आम बात हो गयी है। आयुर्वेद के अनुसार, मुख्य भोजन का समय पित्त काल के दौरान, यानी दोपहर 11 बजे से 1 बजे के बीच होता है। इस समय पाचन अग्नि सबसे प्रबल होती है, जो भोजन को अच्छी तरह पचाने में सहायक होती है और “आम” (अधपचा भोजन) बनने से रोकती है।
भोजन और मानसिकता:
सही पाचन के लिए ध्यान केंद्रित करना! भोजन करते समय मन को भोजन पर केंद्रित रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। आजकल लोग टीवी देखते हुए या अन्य कार्य करते हुए भोजन करते हैं, जिससे उनका ध्यान भोजन से हट जाता है। आयुर्वेद के अनुसार, मन और पेट का गहरा संबंध है। जब हम खाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो पाचन प्रक्रिया सही ढंग से होती है। अगर मन कहीं और विचलित है, तो पाचन प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न हो सकती है, और यह पाचन से सम्बंधित रोग का कारण बन सकता है।
भोजन का समय और उम्र के अनुसार भिन्नता
भोजन का समय उम्र के अनुसार भी भिन्न हो सकता है। 1 से 8 साल के बच्चों के लिए भोजन पौष्टिक होना चाहिए और जब भी उन्हें भूख लगे, उन्हें भोजन देना चाहिए। आदर्श भोजन समय 7 से 9 बजे सुबह, 12 से 2 बजे दोपहर, और सूर्यास्त के समय होता है। 20 से 28 साल की उम्र के बाद, भोजन का समय व्यक्ति के व्यवसाय पर निर्भर करता है। 28 साल के बाद एक स्वस्थ व्यक्ति को दिन में दो बार भोजन करना चाहिए, और 40 साल के बाद इस पैटर्न का पालन करना बेहतर होता है।
प्रकृति के अनुसार आहार:
वात, पित्त, और कफ
वात प्रकृति वाले लोगों का भूख का समय अनियमित होता है। अगर उन्हें भारी आहार दिया जाए और समय पर न दिया जाए, तो यह उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल सकता है। पित्त प्रकृति वाले लोगों को अपने आहार में अधिक छाछ शामिल करनी चाहिए, जबकि कफ प्रकृति वाले लोग लंबे समय तक उपवास सहन कर सकते हैं। भोजन का समय और प्रकार व्यक्ति की प्रकृति के अनुसार निर्धारित किया जाना चाहिए, लेकिन वे जिस भी प्रकृति के हों एक नियम सभी के लिए समान है कि सभी को रात का भोजन सूर्यास्त से पहले कर लेना चाहिए।
आयुर्वेदिक सिद्धांत:
भोजन के नियम और स्वास्थ
आयुर्वेद में भोजन के सिद्धांत बताते हैं कि भोजन ताजा और स्वच्छ होना चाहिए। बासी या पैकेज्ड भोजन से बचना चाहिए। लोग आज कल हर भोजन का समय निर्धारित कर लेते हैं और चाहे भूख लगे या न लगे, भोजन का पाचन हुआ हो या न हुआ हो, वे अपने समय पर भोजन कर लेते हैं। यह ठीक नहीं है। जब तक भोजन का पाचन अच्छे से न हो जाए, तब तक अगला भोजन नहीं करना चाहिए। यह सिद्धांत व्यक्ति को रोगों से दूर रखता है।
Dr. (Vaid) Deepak Kumar
Adarsh Ayurvedic Pharmacy
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