अपना उल्लू सीधा करने को बनायी अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद
हरिद्वार। स्वामी रूद्रानंद गिरि महाराज ने कहाकि देश में धर्म व अध्यात्म का प्रचार-प्रसार करने वाले को साधु कहा जाता है। संन्यास की दो परम्परा हैं। एक स्वंय सिद्ध परम्परा और दूसरी गुरु-शिष्य परम्परा। गुरु-शिष्य परम्परा में अखाड़े और मठों की परम्परा है। उनके निजी नीति नियम व जीवन शैली है। स्वंय सिद्ध परम्परा में संत कथा, प्रवचन, अध्यात्म व चमत्कारों के आधार पर अपने अनुयायी बनाते हैं। जबकि गुरु-शिष्य परम्परा में जब धन बल बन जाता है तो अपनी परम्परा चला देते हैं। उन्होंने कहाकि ऐसे लोगों को सम्मान मिले और परम्परा को पैसा मिले ये लोग पदों का अविष्कार कर देते हैं और भोली-भाली जनता को बड़े प्रेम से लुटते हैं। स्वामी रूद्रानंद गिरि महाराज ने प्रेस को जारी बयान में कहाकि इन लोगों की संख्या बल के आधार पर सरकारें भी इनकी मदद करती हैं। इतना ही नहीं अधिकारी भी ऐसे लोगों का समर्थन करते हैं। यह कार्य अब बढ़ता ही चला जा रहा है। उन्होंने कहाकि गुंरु-शिष्य परम्परा में कुछ संतों ने दो नामों से संस्था बनाकर अपना उल्लू सीधा किया हुआ है। वे दो नाम हैं अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद व भारत साधु समाज। अखाड़ा परिषद केवल 13 अखाड़ों के प्रतिनिधियों की बनी एक कमेटी हैं जो कुंभ मेले में प्रशासन को मदद करती है। उन्होंने कहाकि अखाड़ा परिषद में केवल 13 अखाड़ों के प्रतिनिधि शामिल किए जाते हैं। और किसी भी परम्परा के साधु को शामिल नहीं किया जाता। उन्होंने कहाकि ये लोग बड़े प्रेम के साथ शासन व प्रशासन के साथ मिलकर अपना साम्राज्य बढ़ाते रहते हैं। जबकि भोली-भाली जनता को इसका पता तक नहीं चलता। उन्होंने कहाकि दूसरी संस्था भारत साधु समाज है, जो देश के कई प्रांतों के कुछ चालाक संतों का एक गिरोह बनाकर उनके पदाधिकारी बन भोली-भाली जनता को गुमराह कर उन्हें लुटने का कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहाकि जबकि सरकार, प्रशासन और आमजन ऐसा मानते हैं कि ये लोग संत समाज के पदाधिकारी हैं। उन्होंने कहाकि सरकार, प्रशासन और जनता के भ्रम को दूर करने के लिए मुझे यह सब कहना पड़ा है। जिससे सभी गिरोह बनाकर लुटने वालों से सचेत हों। उन्होंने कहाकि यदि भारत साधु समाज के संतों को इस बयान से शंका है तो वह बताएं कि उन्होंने कब समाज का मतदान करवाया और सूची जारी करें की उनके समाज में कितने साधु हैं। उन्होंने कहाकि इस गिरोह में मालदार साधु होने के कारण आम साधु इनके खिलाफ आवाज तक नहीं उठा पाता है।