प्रयागराज में बाबाओं के दो गुटों के बीच हुए विवाद का तो पटाक्षेप समझौते के साथ हो गया है, किन्तु इस जुतम पैजार से जो सनातन को हानि हुई और समूचे विश्व में लो भगवे के प्रति गलत संदेश गया उसकी भरपायी मुमकिन नहीं है।
हालांकि मेलाधिकारी की मध्यस्थता के बाद दोनों धड़ों ने न सिर्फ भूमि का निरीक्षण किया और पुलिस को दी शिकायत भी वापस ले ली। इसके बाद हरी गिरी ने सारे झगड़े को जीरो घोषित कर दिया और कहा झगड़े का प्रचार मीडिया की देन है। हालांकि श्री पंच निर्मोही अनि अखाड़े के अध्यक्ष राजेंद्र दास ने कहा है कि अखाड़ों में भिड़ंत और संतों की लड़ाई से दुनिया में गलत संदेश गया है। जिसके कारण महाकुंभ को दिव्य-भव्य बनाने के लिए शिकायत को वापस ले लिया गया है।
यह तो बाबाओं की लीला है कि झगड़े के बाद हुई अपनी फजीहत को वह किस प्रकार से समेटने का कार्य कर रहे हैं, किन्तु जो कुछ हुआ और मर्यादा की सीमाओं को उनके द्वारा लांघा गया जो समय-समय पर सनातन और नैतिकता की बात करते हैं।
हंगामा होने के बाद अब कुछ भी कहा जाए से बेमानी है। झगड़े की असली वजह भूमि आबंटन नहीं और कुछ ही बतायी जा रही है। सूत्रों की माने तो बाबाओं को एक धड़ा एक संत को उसके अखाड़े से बाहर करने की रणनीति पर अमल कर रहा था। मंहत को हटाकर किसी वृंदावन के संत को उसके स्थान पर बैठाने और अपने संख्या बल बढ़ाने की मंशा मात्र थी। सवाल उठता है कि यदि किसी को उसके घर से निकालने और दूसरे को बैठाने की चाल चली जाए तो उसकी प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक है। वहीं एक गुट ऐसा माहौल जानबूझाकर बनाना चाहता था, जिससे की उनकी संख्या बल में इजाफा होने के साथ समाज में वह हाईलाईट हो सकें, किन्तु बाबाओं को दांव उल्टा पड़ गया।
बाबाओं के झगड़े और अर्मादित भाषा के प्रयोग के बाद शासन-प्रशासन की भृकुटि तन गयी। इसका परिणाम यह हुआ की समझौता करने को उपद्रवी बाबाओं को बाध्य होना पड़ां यदि ऐसा न करते तो हो सकता था कि गंगा स्नान के मंसूबे पाले हुए कुछ बाबाओं को जेल में स्नान तक करना पड़ सकता था।
कारण कुछ बाबाओं की समूची जन्म कुण्डली शासन-प्रशासन के पास है। दोनों की बाबाओं की कारगुजारियों को भलीभांति जानते हैं। कुछ बाबाओं की फाईल तो इतनी मोटी है की उसका अवलोकन करने में ही सप्ताह भर का समय लग जाए। इस डर के कारण बाबाओं को आत्मसमर्पण समझौते के रूप में करना पड़ा। यदि बाबा ऐसा नहीं करते तो एक-एक बाबा की एक-एक जन्म कुण्डली का वाचन यदि शासन-प्रशासन द्वारा शुरू कर दिया जाता तो बाबाओं की कुण्डली का गणित ही बिगड़ जाता और कुण्डली के फलित के रूप में कुंभ का स्नान उन्हें जेल में करने के लिए बाध्य होना पड़ता। जेल स्नान से समझौता करने में ही बाबाओं ने अपनी भलाई समझी।
सभी जानते हैं कि उपद्रवी बाबाओं के कुछ ऐसे हैं जिन्होंने बड़े क्षेत्रफल की भूमि पर जबरन कब्जा किया हुआ है। कई अन्य मामले भी इनके जगजाहिर हैं। वहीं धोखाधड़ी करने और कई गुप्तराज अपने उदर में लेकर बैठने वालों के राज भी सर्वाजनिक हैं। हालांकि राजदार यह मानते हैं कि किसी को किसी भी राज के बारे में जानकारी नहीं है। इन सब वजहों से समझौते से के लिए बाबाओं को बाध्य होना पड़ा।