हरिद्वार। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के सर्वसम्मपति से नए अध्यक्ष के निर्वाचित होने के बाद दो फाड़ हुई अखाड़ा परिषद में विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। जिस प्रकार के हालात बनते जा रहे हैं उसको देखते हुए मामला न्यायालय तक जाने की उम्मीद है। हालांकि दूसरे पक्ष की सोमवार को प्रयागराज में बैठक प्रस्तावित है। जिसमें एक और नए अध्यक्ष का ऐलान होना है।
वहीं दूसरे पक्ष द्वारा निर्मल अखाड़े का समर्थन होने का दावा करने के बाद रार और बढ़ गयी है। हालाकि जिस निर्मल अखाड़े के साथ होने का दावा किया जा रहा है वह भी दो फाड़ हो चुकी अखाड़ा परिषद के दूसरे गुट की तरह ही है।
नव निर्वाचित अखाड़ा परिषद में सात अखाड़े शामिल हैं। जबकि दूसरे पक्ष में केवल छह अखाड़े ही हैं। ऐसे में नए अध्यक्ष के पास बहुमत का आंकड़ा है। जबकि दूसरे पक्ष की दलील है कि बैरागी संत कुंभ के समय ही परिषद से अलग हो गए थे, इस कारण से उसका कोई औचित्य परिषद में शेष नहीं रह गया है।
एक संत ने बताया कि अखाड़ा परिषद का असली स्वरूप सभी तेरह अखाड़ों के समावेश से ही है। कुंभ के दौरान शासन-प्रशासन भी तेरह अखाड़ों की परिषद को ही मान्यता देता है। इसके साथ जहां सभी सम्प्रदाय के संत होंगे वही गुट मान्य होगा। नए अध्यक्ष वाली अखाड़ा परिषद में चर्तु सम्प्रदाय संन्यासी, बैरागी, उदासीन व निर्मल शामिल हैं। जबकि दूसरे गुट में संन्यासी, ब्रह्मचारी और उदासीन शामिल हैं। ऐसे में दूसरा गुट सभी सम्प्रदायों को समाहित किए हुए नहीं हैं।
उधर परिषद के दूसरे गुट द्वारा जिस निर्मल सम्प्रदाय के रेशम सिंह का समर्थन होने का दावा किया जा रहा है, उसे पूर्व में ही अखाड़े से बाहर किया जा चुका है। दूसरा यह कि अखाड़ा परिषद ने जिस निर्मल अखाड़े के संत देवेन्द्र सिंह को परिषद के दो फाड़ होने से पूर्व तक तथा श्रीमहंत नरेन्द्र गिरि की मौत के बाद कार्यकारी अध्यक्ष बनाया था वह अब फर्जी कैसे हो गये। यदि रेशम सिंह निर्मल अखाड़े के कर्ताधर्ता हैं तो फिर देवेन्द्र सिंह को पूर्व में निर्मल अखाड़े की ओर से क्यों शामिल किया गया और उन्हें पद क्यों दिया गया। सवाल उठता है कि यदि रेशम सिंह निर्मल अखाड़े का प्रतिनिधित्व करते हैं और परिषद के दूसरे गुट द्वारा रेशम सिंह के समर्थन का जो दावा किया जा रहा है तो ऐसे में पूर्व की गठित कार्यकारिणी जिसमें निर्मल अखाड़े के संत देवेन्द्र सिंह शामिल थे किस हैसियत से उन्हें पद दिया गया था।
उधर अखाड़ा परिषद के दो फाड़ होने के मामले को न्यायालय में ले जाए जाने पर गुजरात के एक संत का कहना है कि यदि मामला न्यायालय में जाता है तो वे अभी तक हुई अखाड़ा परिषद की कारगुजारियो ंका कच्चा चिट्ठा न्यायालय के सामने प्रस्तुत करेंगे। बहरहाल अखाड़ा परिषद की रार कहां जाकर ठहरती है यह भविष्य के गर्त में है। किन्तु इतना तय है कि 25 अक्टूबर के बाद प्रयागराज में होने वाली बैठक के बाद रार और बढ़ेगी। जहां एक ही परिषद के दो-दो अध्यक्ष व अन्य पदाधिकारी दो-दो देखने को मिलेंगे।

जिस गुट में चर्तु सम्प्रदाय शामिल वहीं असली अखाड़ा परिषद


