हरिद्वार कोरिडोर: पौराणिकता व धार्मिकता पर कुठाराघात

व्यापारियों को राजनैतिक हित छोड़कर एक मंच पर आना होगा


डा. रमेश खन्ना
हरिद्वार।
हरिद्वार कॉरिडोर मुद्दा अब राज्य सरकार का मुद्दा नहीं है, यह सब केंद्र सरकार के इशारे पर चल रहा है। जब चुनाव से पूर्व वर्तमान सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत से एक मीटिंग में व्यापारियों ने अपनी नाराजगी जाहिर की थी, तो सांसद ने साफ-साफ शब्दों में कह दिया था कि हरिद्वार को कॉरिडोर की आवश्यकता है, और यह केंद्र सरकार की योजना है। फिर जी-20 महासम्मेलन में केंद्र सरकार और मोदी जी खुद हरिद्वार का कॉरिडोर का ढिंढोरा पीट चुके हैं।


मेरे ख्याल से व्यापारियों को राजनैतिक हित छोड़कर एक मंच पर इकट्ठा होना चाहिए। हरिद्वार के धर्माचार्यों व अखाड़ांे की चुप्पी के पीछे भी एक बड़ा कारण है। हरिद्वार में अधिकांश संपत्तियां अखाडों, आश्रमों तथा धार्मिक संस्थाओं की हैं, जिसमें बेहद पुराने किराएदार हैं, जिससे उनका कोई बड़ा आर्थिक लाभ नहीं होता और वर्तमान सरकार में उनकी पूरी दखलंदाजी है। मुआवजे की मोटी रकम उन्हें मिलनी है इसलिए वह इस योजना का मूक समर्थन कर रहे हैं।

कॉरिडोर का यह मुद्दा उस समय उठा जब केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल हरिद्वार आए थे। तब वहां तत्कालीन सांसद रमेश पोखरियाल निशंक और हरिद्वार विधायक मदन कौशिक वहां मौजूद थे। तब पार्टी के कुछ उत्साही लोगों ने हरिद्वार में कॉरिडोर की मांग रख दी, और यह मैसेज दिल्ली दरबार में पहुंच गया। तब कुछ धार्मिक संगठनों ने इसका समर्थन भी कर दिया था। इसलिए हरिद्वार की जनता और व्यापारियों को सत्तारूढ़ दल से कोई मदद या रिआयत मिलने की खास उम्मीद नहीं है। यदि व्यापारी यह सोच रहे हैं कि आंदोलन व प्रदर्शनों से यह काम रुक जाएगा तो वह गलतफहमी के शिकार है सत्ताधारी जनप्रतिनिधियों की इस मुद्दे पर खामोशी इस हकीकत को बयां कर रही हैं।

सरकार के नुमाइंदों से कोई यह पूछे कि जब सरकार आंकड़े जारी करती हैं कि श्रावण में 4 करोड़ 5 करोड़ कांवडिये आये और सकुशल जल लेकर लौट गये तब सरकार को कॉरिडोर की आवश्यकता महसूस नहीं होती। आज तक महाकुम्भ और अर्ध कुम्भ भी इसी व्यवस्था के अधीन होते आ रहे हैं। भले आदमियों तब क्यों दो वक्त की रोटी के लिए खून पसीना बहा रहे व्यापारियों का उत्पीड़न और भयादोहन कर रहे हो। हरिद्वार में व्यापार पहले से ही घोरमंदी के दौर से गुजर रहा हैं।

एक बात समझ में नहीं आई कि हरकी पैड़ी करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र है। लोग यहां देश ही नहीं विदेश से मां गंगा जी में स्नान, आचमन व आरती दर्शन के लिए आते हैं। यह हमारी पौराणिकता, धार्मिकता और प्राचीन धरोहर का मामला है। सर्वे करने वाली कंपनी को फलां जगह से हर की पैड़ी नजर नहीं आती इससे क्या लेना देना हैं ।

हरिद्वार के पौराणिक स्वरूप को दबाकर इसे पर्यटकों व सैलानियों की ऐशगाह बनाने की मंशा इसी से जाहिर होती है कि श्रवण नाथ नगर में सैकडों होटल होते हुए भी एक लग्जरी ऐशो आराम से युक्त होटल की वकालत सर्वे रिपोर्ट में दी जा रही है। यह विश्व विख्यात पौराणिक स्थल की अस्मिता से खिलवाड़ करने की साजिश हैं। हरिद्वार के लोगों को सभी मतभेद भुलाकर एकजुट होकर इसका पूरजोर विरोध करना चाहिए, चाहे उन्हें उच्च न्यायालय की शरण क्यों ना लेनी पड़ें।

अब कनखल पर भी कई रिपोर्ट सर्वे कंपनी ने दी है शंकराचार्य चौक से पहाड़ी बाजार होते हुए दक्ष मंदिर भी चौड़ीकरण में शुमार है। सन्यास रोड पर पुराने धोबी घाट पुल से दक्ष मंदिर तक गंगा किनारे लगभग डेढ़ किलोमीटर लंबा घाट बनाने का भी उल्लेख है। चण्डी देवी, मनसा देवी भी कॉरिडोर योजना में हैं। एचआरडीए का 2005 से 2025 तक का मास्टर प्लान भी इसमें शामिल कर लिया गया है।


जिस हिसाब से सर्वे रिपोर्ट तैयार हो रही है वह हरिद्वार की पौराणिकता और उसकी ऐतिहासिक पहचान को समाप्त कर इसे टूरिस्ट का पिकनिक स्पॉट व सैर सपाटे का केंद्र बनाना है। यदि ऐसा होगा तो यह इस सप्तपुरियों में एक भगवान हरि और मां गंगा के हिंदुओं के सबसे बड़े तीर्थ की मर्यादा, पौराणिकता और धार्मिकता पर भयंकर कुठाराघात होगा।

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