हिन्दी अपनानी है तो सवारी के स्थान पर यान शब्द लगाना होगा
हरिद्वार। उज्जैन के महाकाल की गत सोमवार को निकली सवारी और उसमें मध्य प्रदेश के सीएम द्वारा सवारी को राजसी सवारी कहकर सम्बोधित करने के बाद एक नई बहस छिड़ गई है। जिसके बाद अब कुंभ आदि पर्वों में निकलने वाली पेशवाई तथा शाही स्नान का नाम परिवर्तन कर हिन्दी नामकरण किए जाने की तैयारी होने लगी है।
इस संबंध में श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के सचिव श्रीमहंत रविन्द्र पुरी महाराज ने एमपी के सीएम के बयान का समर्थन करते हुए कुंभ में संतों के होने वाले शाही स्नान को राजसी स्नान और पेशवाई को राजसी सवारी कहकर सम्बोधित करने की बात कही है। उनका तर्क है की शाही और पेशवाई ऊर्दू के शब्द हैं।
यहां उल्लेखनीय है कि शाही और पेशवाई शब्द फारसी भाषा के शब्द हैं। इसके साथ ही जिस राजसी सवारी की बात कही गई है, उसकी व्युतपत्ति प्रोटा-जर्मेनिक भाषा से हुई है। विद्वानों का मानना है कि सवारी शब्द भी फारसी भाषा का शब्द है। सवारी शब्द संज्ञा है और स्त्रीलिंग है, जबकि हिन्दी में सवारी शब्द का कहीं प्रयोग नहीं किया गया है। हिन्दी में सवारी के स्थान पर यान शब्द का प्रयोग होता आया है। ऐसे में यदि पेशवाई शब्द को राजसी सवारी भी कर दिया जाए जो वह विशुद्ध हिन्दी भाषा का शब्द नहीं कहा जा सकता। ऐसे में हिन्दी के अनुसार राजसी यान का प्रयोग तो किया जा सकता है, किन्तु राजसी सवारी कहा जाना हिन्दी विद्वानों के अनुरूप उचित नहीं कहा जा सकता।
वहीं हिन्दी विद्वानों का मानना है कि पेशवाई शब्द भी फारसी का शब्द है। जिसका अर्थ होता है नेतृत्व करना, आगे चलना आदि-आदि। इसके साथ ही पेशवाई शब्द का प्रयोग महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज के समय में देखने को मिला। विद्वानों का कहना है कि बाजीराव पेशवा के समय से पेशवाई शब्द चलन में आया। पेशवाओं की निकली वाली सवारी को पेशवाई कहा जाता था, जिस कारण से कुंभ आदि पर्वों में निकलने वाले संतों के समूह को पेशवाई कहा जाने लगा। अब यदि पेशवाई के स्थान पर कोई नया नामकरण किया जाता है तो पेशवाओं की पेशवाई को तो बदला नहीं जा सकता।
वहीं दूसरी ओर विद्वानों का कहना है कि अखाड़ों में भी श्रीमहंतों के उप महंत को कारोबारी कहा जाता है। कारोबारी शब्द भी हिन्दी का शब्द नहीं है। इसके साथ ही अखाड़ों में जिलेदार का भी पद होता है। इसे भी हिन्दी का शब्द नहीं कहा जा सकता।
कुल मिलाकर कुछ ऐसे शब्द हैं, जो भाषा में पूरी तरह से रच बस गए हैं। कुछ ऐसे शब्द भी हैं यदि उनको शुद्ध हिन्दी में उच्चारित किया जाए तो आम आदमी की समझ से परे हो सकते हैं।
हालांकि सनातन परम्पराओं में यदि अन्य भाषाओं के स्थान पर हिन्दी या संस्कृत के शब्दों का उपयोग किया जाता है तो यह उचित कदम होगा, किन्तु इसके लिए हमको हिन्दी सिखनी होगी। आज जो हम आम बोलचाल की भाषा में हिन्दी का प्रयोग करते हैं वह हिन्दी नहीं पंचमेल खिचड़ी है। ठीक उसी प्रकार से पेशवाई को राजसी सवारी कहना। यदि इसका हिन्दी नामकरण ही करना है तो इसे राजसी यान ही कहा जाएगा।