बिना पैसे घरेलू उपचार, अद्भुत आयुर्वेदिक जल

1ः- सोंठ जल
पानी की पतीली में एक पूरी साबूत सोंठ डालकर पानी गरम करें। जब अच्छी तरह उबलकर पानी आधा रह जाये तब उसे ठंडा कर दो बार छानें। ध्यान रहे कि इस उबले हुए पानी के पैंदे में जमा क्षार छाने हुए जल में न आवे। अतः मोटे कपड़े से दो बार छानें।
यह जल पीने से पुरानी सर्दी, दमा, टीबी, श्वास के रोग, हांफना, हिचकी, फेफड़ों में पानी भरना, अजीर्ण अपच, कृमि, दस्त, चिकना आमदोष, बहुमूत्र, डायबिटीज, लो ब्लड प्रेशर, शरीर का ठंडा रहना, मस्तक पीड़ा जैसे कफदोषजन्य तमाम रोगों में यह जल उपरोक्त रोगों की अनुभूत एवं उत्तम औषधि है। यह जल दिनभर पीने के काम में लावें। रोग में लाभ प्राप्ति के पश्चात भी कुछ दिन तक यह प्रयोग चालू ही रखें।

2ः- धनिया जल
एक लीटर पानी में एक से डेढ़ चम्मच सूखा (पुराना) खड़ा धनिया डालकर पानी उबालें। जब 750 एमएल जल बचे तो ठंडा कर उसे छान लें। यह जल अत्यधिक शीतल प्रकृति का होकर पित्तदोष, गर्मी के कारण होने वाले रोगों में तथा पित्त की तासीर वाले लोगों को अत्यधिक वांछित लाभ प्रदान करता है।
गर्मी-पित्त के बुखार, पेट की जलन, पित्त की उलटी, खट्टी डकार अम्लपित्त, पेट के छाले, आंखों की जलन, नाक से खून टपकना रक्तस्राव, गर्मी के पीले पतले दस्त, गर्मी की सूखी खांसी, अति प्यास तथा खूनी बवासीर (मस्सा) या जलन सूजन वाले बवासीर जैसे रोगों में यह जल अत्यधिक लाभप्रद है। अत्यधिक लाभ के लिए इस जल में मिश्री मिलाकर पियें।
जो लोग कॉफी तथा अन्य मादक पदार्थों का व्यसन करके शरीर का विनाश करते हैं उनके लिए इस जल का नियमित सेवन लाभप्रद तथा विषनाशक है।

3ः- अजवाइन जल
एक लीटर पानी में ताजा नया अजवाइन एक चम्मच डालकर उबालें। आधा पानी रह जाय तब ठंडा करके छान लें व पियें।
यह जल वायु तथा कफ दोष से उत्पन्न तमाम रोगों के लिए अत्यधिक लाभप्रद उपचार है।
इसके नियमित सेवन से हृदय की शूल पीड़ा, पेट की वायु पीड़ा, आफरा, पेट का गोला, हिचकी, अरुचि, मंदाग्नि पेट के कृमि, पीठ का दर्द, अजीर्ण के दस्त, कॉलरा, सर्दी, बहुमूत्र, डायबिटीज जैसे अनेक रोगों में यह जल अत्यधिक लाभप्रद है। यह जल उष्ण प्रकृति का होता है।

4ः- जीरा जल
एक लीटर पानी में एक से डेढ़ चम्मच जीरा डालकर उबालें। जब 750 एमएल पानी बचे तो उतारकर ठंडा कर छान लें। यह जल धनियां जल के समान शीतल गुणवाला है। वायु तथा पित्तदोष से होने वाले रोगों में यह अत्यधिक हितकारी है। गर्भवती एवं प्रसूता स्त्रियों के लिए तो यह एक वरदान है। जिन्हें रक्तप्रदर का रोग हो, गर्भाशय की गर्मी के कारण बार-बार गर्भपात हो जाता हो अथवा मृत बालक का जन्म होता हो या जन्म देने के तुरंत बाद शिशु की मृत्यु हो जाती हो, उन महिलाओं को गर्भकाल के दूसरे से आठवें मास तक नियमित जीरा-जल पीना चाहिए।


एक एक दिन के अंतर से आने वाले, ठंडयुक्त एवं मलेरिया बुखार में, आंखों में गर्मी के कारण लालपन, हाथ पैर में जलन, वायु अथवा पित्त की उलटी (वमन), गर्मी या वायु के दस्त, रक्तविकार, श्वेतप्रदर, अनियमित मासिक स्राव गर्भाशय की सूजन कृमि, पेशाब की अल्पता इत्यादि रोगों में इस जल के नियमित सेवन से आशातीत लाभ मिलता है।
इन जलों से विभिन्न रोगों में चमत्कारिक लाभ मिलता है।
Dr. (Vaid) Deepak Kumar
Adarsh Ayurvedic Pharmacy
Kankhal Hardwar, aapdeepak.hdr@gmail.com
9897902760

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