शहंशाह अकबर के दान में दी जमीन पर स्थापित हुई थी बाघम्बरी गद्दी

बड़े हनुमान जी का चमत्कार देख झुका था अकबर
बाघम्बरी के पहले महंत थे बाबा बालकेसर गिरि महाराज
हरिद्वार।
प्रयागराज में शंहशांह अबकर द्वारा दान में दी गयी बाघम्बरी मठ के लिए जमीन का संचालन एक अर्से तक ठीक रहा। उसके बाद बाघम्बरी मठ विवादों में घिरा रहा। बाघम्बरी मठ की स्थापना राजा अकबर के समय में बाबा बालकेसर गिरि महाराज के द्वारा की गयी थी। राजा अकबर द्वारा बाघम्बरी मठ के साथ प्रयागराज जिले में अन्य स्थानों पर भी जमीन दान दी गयी थी। सूत्र बताते हैं कि कुछ समय पूर्व तक अखाड़े में जमीन से संबंधित ताम्रपत्र मौजूद थे। राजा अकबर ने जमीन क्यों दान दी, इसके पीछंे अखाड़े के एक वरिष्ठ संत ने बताया कि उस काल में संगम तट पर स्थित बडे हुनमान जी की मूर्ति को हटाने के लिए राजा अकबर ने बड़ा प्रयास किया, किन्तु हनुमान जी को टस से मस तक नहीं कर पाए। भगवान हनुमान जी की महिमा को देखकर राजा अकबर ने बाघम्बरी मठ के साथ हनुमान जी को जमीन दान दी। बाघम्बरी मठ के पहले महंत बाबा बाल केसर गिरि महाराज थे। उसके बाद से बाघम्बरी मठ की परम्परा चली। यहां यह भी बता दें कि बाघम्बरी मठ गिरि नामा संन्यासियों की गद्दी है।
बाबा बाल केसर गिरि महाराज के बाद अनेक संत इस गद्दी पर विराजमान हुए। वर्ष 1978 में विचारानंद गिरि महाराज इस गद्दी के महंत थे। जिनकी रेल मंे यात्रा करते समय दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गयी थी। उनसे पूर्व पुरूषोत्तमा नंद इस गद्दी पर विराजमान थे। स्वामी विचारानंद महाराज की मृत्यु के बाद श्रीमहंत बलदेव गिरि महाराज इस गद्दी पर विराजमान हुए। संत ने बताया कि वर्ष 2004 में अखाड़े के संतों ने स्वामी बलदेव गिरि महाराज पर गद्दी छोड़ने का दवाब बनाया। संत ने बताया कि बलदेव गिरि महाराज फक्कड़ संत थे। उन्होंने उस समय बिना किसी विरोध के गद्दी को छोड़ दिया। जिसके बाद भगवान गिरि को उनके स्थान पर महंत बनाया गया। गले में कैंसर का रोग हो जाने से दो वर्ष बाद उनकी भी मृत्यु को गयी। भगवान गिरि महाराज की मृत्यु के बाद श्रीमहंत नरेन्द्र गिरि ने अपना दावा पेश किया। और अखाड़े पर दवाब बनाकर 2006 में नरेन्द्र गिरि महंत बन गए। उस समय नरेन्द्र गिरि के गुरु के गुरु भाई मुलतानी मढ़ी के बालकिशन पुरी ने नरेन्द्र गिरि को गद्दी का महंत बनाए जाने का विरोध किया। उनका कहना था कि बाघम्बरी गद्दी गिरि नामा संन्यासियों की है। ऐसे में पुरी नामा संन्यासी का महंत बनना उचित नहीं है। जिस पर नरेन्द्र गिरि ने उनके साथ अभद्रता की। अपमान होने के बाद वे अपना सामान उठाकर तत्काल खिरम राजस्थान के लिए चल गए। बता दें कि नरेन्द्र गिरि नरेन्द्र गिरि न होकर नरेन्द्र पुरी शिष्य हरगोविन्द पुरी थे। नरेन्द्र गिरि के बाघम्बरी मठ का महंत बनने के बाद बाघम्बरी मठ की हजारों वर्ष पुरानी जमीनों को खुदबुर्द करने का सिलसिला शुरू हो गया। जिसकी परिणति आज सबके सामने है।

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