हरिद्वार। कुंभ मेले का आगाज संतों की अखाड़ों में तैयारियों के साथ हो चुका है। इस बार का कुंभ कई मायनों में यादगार होगा। एक तो कोरोना के कारण कुंभ की रौनक के साथ अवधि का कम होना। और दूसरा संतों की राजनीति का चरम पर पहुंचना। इसके साथ ही एक-दूसरे को शह-मात को खेल कुंभ के आरम्भ से कुछ संतों की बीच होना होगा।
कुंभ के आरम्भ होने से पूर्व ही कुंभ मेला निरंजनी अखाड़े के आचार्य पद को लेकर विवादों में रहा। बावजूद इसके अभी विवाद थमा नहीं है। वहीं चर्चा है कि कुंभ की समाप्ति तक दो अखाड़ों के आचार्य अपना पद छोड़ सकते हैं। सूत्र बताते है। कि राजनीति और कलह से बचने के लिए एक आचार्य तो कुंभ के दौरान ही पद न छोड़ दें।
बताया जाता है कि एक आचार्य पर आचार्य बनने के दौरान हुए सौदे की रकम का अभी तक पूरा न पहुंच पाना है। जबकि आचार्य पर रकम देने के लिए दवाब बनाया जा रहा है। ऐसे में आचार्य के समक्ष समस्या है की वह कुंभ का खर्च करे या फिर तय रकम में से शेष का भुगतान करें।
वहीं दूसरे आचार्य के साथ कई प्रकार के विवादा घिरे हुए हैं। जो की अभी और बढ़ सकते हैं। वहीं आचार्य बने रहते हुए उनके हाथों से करोड़ों रुपये की सम्पत्ति जाने का भी खतरा बना हुआ है। ऐसे में वह भी आचार्य पद सम्पत्ति को बचाने और कानूनी दांव-पेच में फंसने से बचने के लिए छोड़ सकते हैं। अब समय ही बताएगा की संतों की राजनीति किस करवट बैठती है। कौन पद छोड़ता है और किसकी ताजपोशी होती है।