हरिद्वार। हिंदू रक्षा सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष व श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के महामण्डलेश्वर स्वामी प्रबोधानंद गिरि महाराज ने कहाकि जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज द्वारा श्री तुलसीदास द्वारा रचित ग्रंथों पर टिप्पणी करने का अर्थ है बुढ़ापे में बुद्धि भ्रष्ट होना। रामभद्राचार्य जैसे महापुरुष द्वारा श्री हनुमान चालीसा की चौपाइयों पर ज्ञान का उपदेश देना वास्तव में ग्रंथों का मजाक बनाना है।
हिंदू रक्षा सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी प्रबोधानंद गिरि महाराज ने कहा कि ऐसा लगता है कि स्वामी प्रसाद मौर्य से रामभद्राचार्य की कोई गहरी सांठगांठ हो गई है। गोस्वामी तुलसीदास के ग्रंथों पर टिप्पणी करना स्वामी प्रसाद मौर्य को समर्थन करना जैसा है। स्वामी प्रसाद मौर्य सनातन विरोधी शक्तियों के हाथों खेल रहे हैं। वह किसी विदेशी षड्यंत्र के इशारे पर यह कार्य कर रहे है। उन्होंने कहाकि आश्चर्य इस बात का भी है इतने बुजुर्ग रामभद्राचार्य की भी बुढ़ापे में बुद्धि का दिवालिया निकल गया है और ऐसी टिप्पणी कर रहे हैं। इससे ऐसा लगता है कि श्री रामभद्राचार्य एक विदेशी षडयंत्र के शिकार हो गए हैं। उन्होंने कहाकि सनातन ग्रंथों पर किसी को भी टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है और नहीं करने दिया जाएगा।
कहाकि इस कृत्य के लिए श्री रामभद्राचार्य को समाज से माफी मांगनी चाहिए, अगर वह माफी नहीं मांगते हैं तो यह माना जाएगा की जानबूझकर यह कार्य कर रहे हैं और वह विदेशी मिशनरियों के हाथ खेल रहे हैं। साधु वेश में कोई व्यक्ति अगर विदेशियों के इशारे पर कार्य करता है तो यह देश का दुर्भाग्य है। कहाकि अगर उन्होंने हिंदू समाज से माफी नहीं मांगी तो हिंदू रक्षा सेना उनका कड़ा विरोध करेगी तथा आवश्यकता पड़ी तो समाज से बहिष्कार का अभियान चलाएगी। स्वामी प्रबोधानंद गिरि ने कहा कि चाहे व्यक्ति कितना ही बड़ा क्यों न हो उसे सनातन संस्कृति के धर्म ग्रंथों के साथ खिलवाड़ नहीं करनी दी जाएगी, क्योंकि सनातन धर्म के ग्रंथों का स्वरूप साक्षात भगवान का स्वरूप है। अगर कोई ग्रंथों का अपमान करता है तो उसका मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा और उनके खिलाफ समाज द्रोही कार्रवाई की जाएगी। कहाकि वास्तव में यह हिंदू समाज की आस्था का मजाक है, जो किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
बता दें कि जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज ने हनुमान चालीसा के कुछ शब्दांे के स्थान पर अपने शब्द दिए हैं।