संत का मंत्रः समाप्त हो सकता है संतों की हत्या व सम्पत्ति विवाद का सिलसिला, जानिए कैसे

हरिद्वार। अखाड़ों और मठों में विवाद की असली वजह इनकी अकूत सम्पत्ति व बेतहाशा जमीन हैं। इन्हीं के कारण संतों में आपस में विवाद सामने आते रहे हैं। सम्पत्ति के कारण कई संतों को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ा है। हरिद्वार की ही बात करें तो यहां न्यायालय में बैठे प्रत्येक व्यक्ति में से दूसरा व्यक्ति के हाथ में संतों की सम्पत्ति विवाद की फाइल मिल जाएगी। आज भी सैंकड़ों मामले संतों के सम्पत्ति से जुड़े न्यायालय में चल रहे हैं। मध्य प्रदेश के एक संत ने बताया कि सम्पत्ति को लेकर हो रही संतों की हत्याएं और विवादों को पूरी तरह से रोका जा सकता है। इसके लिए संतों के साथ सरकारों को भी दृढ इच्छा शक्ति का परिचय देना होगा। उनके मुताबिक अखाड़ों व मठों के पास धन व सम्पत्ति इनके स्वंय के द्वारा अर्जित की हुई नहीं है। पूर्व में राजा-महाराजाओं व जमीदारों ने संतों को सम्पत्ति धर्म रक्षा व धर्म के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से दी थी। अकूत सम्पदा होने के कारण वर्तमान में संतों में विकृति आ गयी है। जो भी संत मठ या अखाड़े का पदाधिकारी बनता है वह स्वंय को उसका मालिक मान बैठता है और सम्पत्तियों को अपनी विलासितापूर्ण जीवनशैली जीने के लिए बेचना या खुर्दबुर्द करना शुरू कर देता है, जिस कारण से विवाद की स्थिति उत्पन्न होती है और कहीं-कहीं बात हत्या जैसे जघन्य अपराध तक पहुंच जाती है। संत के मुताबिक सरकार यदि संतों की हो रही हत्याओं और विवादों पर रोक लगाना चाहती है तो सरकारों को सबसे पहले अखाड़ों और मठों की सम्पत्ति का लेखाजोखा तैयार करना होगा और उसके बाद अखाड़ों व मठों की सम्पत्ति की बिक्री पर पूरी तरह से रोक का आदेश लागू करना होगा। ऐसे में जब सम्पत्ति की खरीद-फरोख्त नहीं होगी तो ऐसे में अखाड़ों व मठों में पदाधिकारी बनने की होड़ भी समाप्त हो जाएगी और सम्पत्ति बेचकर कोई भी अपनी विलासिता पूरी नहीं कर पाएगा। जब किसी संत के पास अकूत सम्पत्ति नहीं होगी तो विवादों पर भी विराम लग जाएगा और अखाड़ों व मठों की सम्पत्ति सुरक्षित भी रह पाएगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *