हरिद्वार। श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन निर्वाण में चल रहे फसाद की वजह यदि किसी को कहा जा सकता हैं तो उसके मूल में लापता कोठारी मोहन दास के कारनामे हैं। यदि कोठारी मोहन दास अन्य संतों को अपनी लाईन पर चलने के लिए न उकसाते तो वर्तमान में अखाड़े में उत्पन्न हुई स्थिति की नौबत नहीं आती।
निष्कासित संतों पर अखाड़े में पद पर रहते हुए व्यवसाय करने के आरोप में कार्यवाही गई है। सूत्र बताते हैं की श्रीमहंत रघुमुनि ने पद पर रहते हुई हरिद्वार में 3 से 4 स्थानों पर जमीनें खरीदी। सूत्र बताते हैं कि इसका आइडिया लापता कोठारी मोहनदास ने ही इन्हें दिया था। बताया जाता है कि रघुमुनि को यह कहकर जमीन खरीदने के लिए प्रेरित किया की अभी वे पद पर हैं और जब रिटायर्ड हो जाएंगे तो खाने-खर्च में सम्पत्ति काम आएगी। जिसके चलते रघुमुनि ने जमीन की खरीद-फरोख्त की।
जबकि अखाड़े के संविधान के मुताबिक अखाड़े में पद पर रहते हुए महंत न तो किसी भी प्रकार का व्यवसाय कर सकता है और न ही शिष्य आदि बना सकता है। यदि महंत कोई जमीन आदि खरीद लेता है, जैसा की महंत रघुमुनि वाले मामले में हुआ तो उसे उसकी धनराशि अखाड़े में जमा करानी होगी। साथ ही अखाड़ के संविधान में वर्णित है की भण्डारे आदि से मिलने वाली दक्षिणा आदि भी खर्च काटकर अखाड़े में जमा कराना होगा। खैर दक्षिण को जमा कराने का चलन तो अब लगभग समाप्त हो चुका है, किन्तु जमीन खरीदने और फिर उसे बेचने से मिलने वाली रकम को अखाड़े में जमा न कराना ही विवाद की मुख्य वजह है।
सूत्रों के मुताबिक जो बीज लापता कोठारी मोहनदास रोपित कर गए थे, उसकी फसल को आज महंत रघुमुनि को काटनी पड़ रही है। वैसे सूत्र बताते हैं कि मामला अभी भी सुलझ सकता है, किन्तु कुछ लोग इस मामले को तूल देने में लगे हुए हैं। जिसके परिणाम घातक होने की संभावना हवा देने के लिए अधिक है।