हरिद्वार। बसन्त पंचमी का पर्व नजदीक है। तीर्थनगरी हरिद्वार में इस दिन मां सरस्वती की पूजा के साथ पतंगबाजी भी जमकर होती है। यंू तो बसंत पंचमी से पूर्व ही वपतंगबाजी शुरू हो जाती है, किन्तु बसंत पंचमी के दिन आसमान में चारों ओर पतंग ही पतंग नजर आती हैं। सुबह से ही क्या बच्चे और क्या बड़े छतों पर चढ़कर पतंगबाजी में मशगूल हो जाते हैं।
बसंत से पूर्व बाजारों में रग-बिरंगी पतंगे सज जाती हैं। इसके साथ ही मांझे की बिक्री भी खूब होती है। पूर्व में लोग अधिकतर स्ंवय की मांझा तैयार करते थे, किन्तु समय के साथ वह प्रचलन समाप्त ही हो गया। लोग बाजारू मांझे पर निर्भर हो गए। कई सालों से बरेली का मांझा लोगों के दिलों पर राज करता रहा है। अलग-अलग रंगों में डोर से बने माझें पर बारीक कांच लगाकर तैयार किया जाता है और पतंगों के पेंच लड़ाने वालों की ये पहली पसंद रहा है। यहां तक तो ठीक था, किन्तु जब से चाइनीज मांझा बाजार में आया है, तब से त्यौहार का आनन्द खराब हो गया है। कारण की चाइनीज मांझा जानलेवा साबित होता है। इससे जहां लोगों को खतरा बना रहता है वहीं पक्षी सबसे अधिक मांझे के कारण चोटिल होते हैं। कई को तो अपनी जान तक गंवानी पड़ती है। बावजूद इसकेे हरिद्वार के बाजारों में जानलेवा चाइनीज मांझे की बिक्री प्रतिबंधित होने के बावजूद भी धडल्ले से जारी है।
बीते दिनों पुलिस प्रशासन द्वारा कुछ स्थानों पर छापेमारी कर चाइनीज मांझा जब्त कर आग के हवाले किया गया, लेकिन अभी भी इस मांझे की बिक्री मुनाफे के चलते चोरी छुपे की जा रही है। शहर से लेकर देहात तक चाइनीज मांझा धड़ल्ले से बिक रहा है। राहगीर इसकी चपेट में आकर घायल हो रहे हैं। कई संगठनों द्वारा इसकी पर रोक लगाने संबंधी ज्ञापन भी दिए गए, लेकिन प्रशासन के ढुलमूल रवैये के चलते कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला।