जवानी खराब कर देता है यह डिसऑर्डर, लड़कियां ज्यादा होती हैं शिकार

देश की 2 से 4 फीसदी आबादी को बिंज ईटिंग डिसऑर्डर (भस्मक रोग) है। इस बीमारी की शुरुआत 17 से 25 साल की उम्र में होती है। यह ऐसी उम्र होती है, जब युवाओं में सबसे ज्यादा एनर्जी होती है और वे खुद के साथ ही अपनी फैमिली, करियर और सोसायटी की बेहतरी के लिए सबसे ज्यादा काम आ सकते हैं। लेकिन, इसी उम्र में बिंज ईटिंग से होने वाली बीमारियों का जाल उन्हें हताशा और डिप्रेशन के अंधकार में ढकेल देता है।

बायोमेडिकल जर्नल पीएमसी के मुताबिक इस एज ग्रुप में भी इसका शिकार टीनएज की लड़कियां ज्यादा होती हैं। वे अपनी इमेज को लेकर बहुत ज्यादा अलर्ट रहती हैं।

हॉर्मोनल बदलाव के साथ ही सुंदर दिखने का दबाव,
करियर और पढ़ाई का स्ट्रेस और फ्रेंड्स से कॉम्पिटिशन
उन पर ज्यादा हावी रहता है। लेकिन, उन्हें इस दबाव से निपटना नहीं आता।
ऐसी स्थिति में जब वो ज्यादा तकलीफ महसूस करती हैं, तो उससे बचने के लिए जरूरत से ज्यादा खाना शुरू कर देती हैं। स्ट्रेस से भागने का सबसे आसान तरीका खाना है।

दोपहर-शाम को पड़ता है दौरा, लड़कियों को ज्यादा खतरा, मां-बाप से मिलने वाली ये बीमारी डॉक्टर नहीं पकड़ पाते।

बिंज ईटिंग डिसऑर्डर जब बार-बार पडे़ खाने का दौरा

क्या आप जानते हैं बिंज ईटिंग किसे कहते हैं? यह एक तरह का डिसऑर्डर है। जिसमें व्यक्ति अपनी नॉर्मल डाइट से कई गुना ज्यादा खाने लगता है और चाहकर भी खुद को रोक नहीं पाता। उसका पेट तो भर जाता है, लेकिन मन नहीं भरता। भूख न होने के बावजूद वह दिन में कम से कम 4 से 5 बार जी भरकर खाता है। अगर पेरेंट्स को यह डिसऑर्डर है, तो बच्चों को चपेट में आने का खतरा रहता है।

यह डिसऑर्डर आमतौर पर 17 साल की उम्र से शुरू होता है और इससे उस उम्र में कई दिक्कतें हो जाती हैं। इसका खतरा आमतौर पर लड़कियों को ज्यादा होता है और अगर यह डिसऑर्डर माता या पिता में से किसी को रहा है, तो इसके बच्चों में ट्रांसफर होने का रिस्क भी बढ़ जाता है। फिलहाल भारत में इस पर ज्यादा चर्चा नहीं होती या रिसर्च नहीं हुई है, इसलिए इस डिसऑर्डर को डॉक्टर भी आसानी से नहीं पकड़ पाते।
बच्चा छिप-छिपाकर खाता है। क्योंकि सबके सामने खाने में उसे शर्मिंदगी महसूस होती है। खाने के बाद फिर पछताता भी है और खुद को दोषी भी मानता है। हालात कभी-कभी इतने बिगड़ जाते हैं कि आत्महत्या तक के ख्याल आने लगते हैं।

कब शुरू होता है बिंज ईटिंग एपिसोड

ऐसे लोगों में किसी दौरे की तरह खाना खाने का जुनून सवार होता है। जिसे डॉक्टर बिंज ईटिंग एपिसोड कहते हैं। जब तनाव, डायटिंग या खुद के बॉडी शेप से जुड़ी कोई निगेटिव फीलिंग, या फिर कोई और मानसिक परेशानी दिलो-दिमाग पर हावी हो जाती है, तब खाने की तलब बिंज ईटिंग एपिसोड में बदल जाती है।

इंटरनेशनल जर्नल ऑफ ईटिंग डिसऑर्डर्स के मुताबिक डिसऑर्डर के शिकार लोग 35 से 40 मिनट तक खा सकते हैं। हर दिन कम से कम 1 बार और अधिकतम 4 बार तक लोग बिंज ईटिंग करते हैं। हफ्ते में वे औसतन 9 बार ऐसी स्थिति का सामना करते हैं। कुछ लोगों को सप्ताह में 17 बार तक इस समस्या का सामना करना पड़ता है।

खाने की यह जुनूनी तलब आमतौर पर दोपहर या शाम को होती है। वीकेंड की बजाए वीकडेज यानी सोमवार से शुक्रवार के बीच ऐसे एपिसोड ज्यादा आते हैं।

इस तरह के बहाने बनाना आसान और आम बात है।
खाने पर मेरा पूरा कंट्रोल है।
मुंह में पानी आ जाए तो चखभर लेता हूं।
खाना देखकर मैं बिना खाए नहीं रह पाता।
टेंशन में कुछ ज्यादा ही खा लेता हूं।
परेशानियों के चक्रव्यूह में फंसा देती है यह बीमारी

Dr. (Vaid) Deepak Kumar
Adarsh Ayurvedic Pharmacy
Kankhal Hardwar aapdeepak.hdr@gmail.com
9897902760

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