पैसों के लालच में परम्पराओं को ताक पर रख रहे संत

गैर ब्राह्मण भी अब बनाए जाने लगे आचार्य मण्डलेश्वर


हरिद्वार।
संतों को सनातन संस्कृति का धर्म ध्वजावाहक कहा जाता है। सनातन परम्पराओं को संजोए रखने में संतों का बड़ा योगदान रहा है। किन्तु अब संत ही सनातन संस्कृति को नुकसान पहुंचाने का कार्य करने लगे हैं। अब गैर ब्राह्मणों को भी आचार्य महामण्डलेश्वर जैसे पदों पर आसीन किया जाने लगा है। इसका प्रमुख कारण धन की लालसा है।
विदित हो कि सनातन संस्कृति में शंकराचार्य व आचार्य महामण्डलेश्वर पद पर आसीन होने का केवल ब्राह्मण ही अधिकारी बताया गया है। शंकराचार्य पद के लिए ब्राह्मण होने के साथ उसका बाल ब्रहमचारी होना भी आवश्यक है। जहां चार शंकराचार्य होने का विधान है वहां आज शंकराचार्य भी कुकुरमुत्तों की भांति दर्जनों पैदा हो गए हैं। वहीं पूर्व में सभी अखाड़ों में एक आचार्य महामण्डलेश्वर हुआ करता था, किन्तु कुछ दशकों पूर्व संन्यासियों के सभी अखाड़ों में अपना-अपना आचार्य बनाया जाने लगा। अभी तक आचार्य पद पर शंकराचार्य की भांति केवल ब्राह्मण को बनाए जाने का विधान था, किन्तु अब पैसों की लालच में गैर ब्राह्मण को आचार्य बनाकर संस्कृति का ह्ास करने का कार्य अखाड़ों द्वारा शुरू हो गया है। कुछ को छोड़ दें तो अधिकांश अखाड़ों की स्थिति यह है कि बिना पैसा दिए मण्डलेश्वर बनना भी मुश्किल है। जबकि आचार्य बनने वाले से तो करोड़ांे रुपये का लेनदेन होता है। यही कारण है कि पैसों के लालच में आकर अब अखाड़ों ने गैर ब्राह्मण को भी आचार्य बनाना शुरू कर दिया है।
मजेदार बात यह कि सब कुछ जानने के बाद भी बात-बात पर हल्ला मचाने वाले कथित भगवाधारी मौन हैं। हाल ही परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद मुनि की एक फोटो को लेकर हल्ला मचाने वालों की भी बोलती परम्पराओं के नष्ट होने पर बंद है। हालांकि हल्ला मचाने वालों ने भी कई बार गैर ब्राह्मण आचार्य के साथ मंच साझा किया है।

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