भगन्दर रोग ओर उसका उपचार बता रहे हैं वैद्य दीपक

बवासीर बहुत पुराना होने पर भगन्दर हो जाता है। जिसे अंगजी में फिस्टुला कहते हें। इसलिए बवासीर को नजर अंदाज ना करे। भगन्दर का इलाज अगर ज्यादा समय तक ना करवाया जाये तो केंसर का रूप भी ले सकता है। जिसको रिक्टम केंसर कहते हें। जो कि जानलेवा साबित होता है। ऐसा होने की सम्भावना बहुत ही कम होती है ।

यह एक प्रकार का नाड़ी में होने वाला रोग है, जो गुदा और मलाशय के पास के भाग में होता है। ये रोग हमारी आज कल की घटिया जीवन शैली की देन हैं, जिसको हम बदलना नहीं चाहते। अपने खान पान पर पूरा ध्यान दे, कूड़ा करकट भोजन ना खाए, कोल्ड ड्रिंक्स तो बिलकुल भी ना पिए। भगन्दर में पीड़ाप्रद दानें गुदा के आस-पास निकलकर फूट जाते हैं। इस रोग में गुदा और वस्ति के चारो ओर योनि के समान त्वचा फैल जाती है, जिसे भगन्दर कहते हैं। ृभग´ शब्द को वह अवयव समझा जाता है, जो गुदा और वस्ति के बीच में होता है। इस घाव (व्रण) का एक मुंख मलाशय के भीतर और दूसरा बाहर की ओर होता है। भगन्दर रोग अधिक पुराना होने परहड्डी में सुराख बना देता है जिससे हड्डियों से पीव निकलता रहता है और कभी-कभी खून भी आता है। कुछ दिन बाद इसी रास्ते से मल भी आने लगता है।भगन्दर रोग अधिक कष्टकारी होता है। यह रोग जल्दी खत्म नहीं होता है। इस रोग के होने सेरोगी में चिड़चिड़ापन हो जाता है। इस रोग को फिस्युला अथवा फिस्युला इन एनो भी कहते हैं।

इस रोग के उपचार में रोगी को पूरी तपस्या करनी पड़ती हैं, अपने खाने पीने के मामले में।

रोग के प्रकारः-
भगन्दर आठ प्रकार का होता है।

  1. वातदोष से शतपोनक
  2. पित्तदोष से उष्ट्र-ग्रीव
  3. कफदोष से होने वाला
  4. वात-कफ से ऋजु
  5. वात-पित्त से परिक्षेपी
  6. कफ पित्त से अर्शोज
  7. शतादि से उन्मार्गी और
  8. तीनों दोषों से शंबुकार्त नामक भगन्दर की उत्पति होती है।
  9. शतपोनक नामक भगन्दरः शतपोनक नामक भगन्दररोग कसैली और रुखी वस्तुओं को अधिक खाने से होता है। जिससे पेट में वायु (गैस) बनता है जो घाव पैदा करती है। चिकित्सा न करने पर यहपक जाते हैं, जिससे अधिक दर्द होता हैं। इस व्रण के पक कर फूटने पर इससे लाल रंग का झाग बहता है, जिससे अधिक घाव निकल आते हैं। इस प्रकार के घाव होने पर उससे मल मूत्र आदि निकलने लगता है।
  10. पित्तजन्य उष्ट्रग्रीव भगन्दरः इस रोग में लाल रंग के दाने उत्पन्न हो कर पक जाते हैं, जिससे दुर्गन्ध से भरा हुआ पीव निकलने लगता है। दाने वाले जगह के आस पास खुजली होने के साथ हल्के दर्द के साथ गाढ़ी पीव निकलती रहती है।
  11. कफदोष से होने वाला भगन्दरः कफदोष से होने वाला भगन्दर से दुर्गन्ध से भरा हुआ पीव निकलता है।
  12. वात-कफ से ऋजुः वात-कफ से ऋजु नामक भगन्दर होता है जिसमें दानों से पीव धीरे-धीरे निकलती रहती है।
  13. परिक्षेपी नामक भगन्दर: इस रोग में वात-पित्त के मिश्रित लक्षण होते हैं।
  14. ओर्शेज भगन्दरः इसमें बवासीर के मूल स्थान से वात-पित्त निकलता है जिससे सूजन, जलन, खाज-खुजली आदि उत्पन्न होती है।
  15. उन्मार्गी भगन्दरः उन्मर्गी भगन्दर गुदा के पास कील-कांटे या नख लग जाने से होता है, जिससे गुदा में छोटे-छोटे कृमि उत्पन्न होकर अनेक छिद्र बना देते हैं। इस रोग का किसी भी दोष या उपसर्ग में शंका होनेपर इसका जल्द इलाज करवाना चाहिए अन्यथा यह रोग धीरे-धीरे अधिक कष्टकारी हो जाता है।
  16. शम्बुकावर्त नामक भगन्दरः इस तरह के भगन्दर से भगन्दर वाले स्थान पर गाय के थन जैसी फुंसी निकल आती है। यह पीले रंग के साथअनेक रंगो की होती है तथा इसमें तीन दोषों के मिश्रित लक्षण पाये जाते हैं।

लक्षणः-
भगन्दर रोग उत्पंन होने के पहले गुदा के निकट खुजली, हड्डियों में सुई जैसी चुभन, दर्द, दाह (जलन) तथा सूजन आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। भगन्दर के पूर्ण रुप से निकलने परतीव्र वेदना (दर्द), नाडि़यों से लाल रंग का झाग तथा पीव आदि निकलना इसके मुख्य लक्षण हैं।

भोजन और परहेजः-
आहार-विहार के असंयम से ही रोगों की उत्पत्ति होती है। इस तरह के रोगों में खाने-पीने का संयम न रखने पर यह बढ़ जाता है। अतरू इस रोग में खास तौर पर आहार-विहार पर सावधानी बरतनी चाहिए। इस प्रकार के रोगों में सर्व प्रथम रोग की उत्पति के कारणों को दूर करना चाहिए क्योंकि उसके कारण को दूर किये बिना चिकित्सा में सफलता नहीं मिलती है। इस रोग में रोगी और चिकित्सक दोनों को सावधानी बरतनी चाहिए।

चिकित्सा
चोपचीनी और मिस्री

भगंदर के लिए चोपचीनी और मिस्री पीस कर इनकेबराबर देशी घी मिलाइए।20-20 ग्राम के लड्डू बना कर सुबह शाम खाइए। परहेज नमक तेल खटाई चाय मसाले आदि हैं। अर्थात फीकी रोटी घी शक्कर से खा सकते हैं। दलिया बिना नमक काहलवा आदि खा सकते हैं। इससे 21 दिन में भगन्दर सही हो जायेगा। इसके साथ सुबह शाम 1-1 चम्मच त्रिफला चूर्ण गुनगुने पानी के साथ ले। इसके साथ रात को सोते समय कोकल का चूर्ण आपको बाजार से मिल जाएगा वो एक चम्मच गुनगुने पानी के साथ ले। 21 दिन में भगन्दरसही हो जायेगा। ये बहुत लोगो द्वारा आजमाया हुआ नुस्खा हैं।

पुनर्नवाः
पुनर्नवा, हल्दी, सोंठ, हरड़, दारुहल्दी, गिलोय, चित्रक मूल, देवदार और भारंगी के मिश्रण को काढ़ा बनाकर पीने से सूजनयुक्त भगन्दर में अधिक लाभकारी होता है। पुनर्नवाशोथ-शमन कारी गुणों से युक्त होता है।पुनर्नवा के मूल को वरुण (वरनद्ध की छाल के साथ काढ़ा बनाकर पीने से आंतरिक सूजन दूर होती है। इससे भगन्दर के नाड़ी-व्रण को बाहर-भीतर से भरने में सहायता मिलती है।

नीम
नीम की पत्तियां, घी और तिल 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर कूट-पीसकर उसमें 20 ग्राम जौ के आटे को मिलाकर जल से लेप बनाएं। इस लेप को वस्त्र के टुकड़े पर फैलाकर भगन्दर परबांधने से लाभ होता है।नीम की पत्तियों को पीसकर भगन्दर पर लेप करने से भगन्दर की विकृति नष्ट होती है।

गुड़
पुराना गुड़, नीलाथोथा, गन्दा बिरोजा तथा सिरस इन सबको बराबर मात्रा लेकर थोड़े से पानी में घोंटकर मलहम बना लें तथा उसे कपड़े पर लगाकर भगन्दर के घाव पर रखने से कुछ दिनों में ही यह रोग ठीक हो जाता है। अगर गुड पुराना ना हो तो आप नए गुड को थोड़ी देर धुप में रख दे, इसमें पुराने गुड जिने गुण आ जाएंगे।

शहद
शहद और सेंधानमक को मिलाकर बत्ती बनायें। बत्ती को नासूर में रखने से भगन्दर रोग में आराम मिलता है।

केला और कपूर
एक पके केले को बीच में चीरा लगा कर इस में चने के दाने के बराबर कपूर रख ले और इसको खाए, और खाने के एक घंटा पहले और एक घंटा बादमें कुछ भी नहीं खाना पीना।

धतूरा
धतूरा के आठ पत्ते लेकर मसल कर लुगदी बना लें और इसे बात्ती जैसा बनाकर घाव में अंदर जितना जा सके रख लें ये रोज रात को सोते समय करें और हफ्ते में एक बार दो पत्ते पीसकर थोडा गुड मिलाकर गोली बना कर गुटक लें ऊपर से थोडा पानी पीलें ये गोली सिर्फ तीन गोली यानि प्रत्येक रबिबार को एक गोली लेनी है इसके प्रयोग से भगदंर जड से चला जाता है।
सावधान–यह प्रयोग केवल जाडे के दिनों में ही किया जाना चाहिये गर्मी के दिनों ये प्रयोग पूर्णतः बर्जित है।

अगर भगन्दर बहुत पुरानी हो और इन प्रयोगो से भी सही ना हो तो कृपया उचित शल्य कर्म करवाये।

Vaid Deepak Kumar
Adarsh Ayurvedic Pharmacy
Daksh Mandir marg Kankhal Haridwar
aapdeepak.hdr@gmail.com
9897902760

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