हरिद्वार। अवतारी सत्ता, सज्जनों एवं संतों के साथ छल करने वाला असंत होता है, जबकि अवतारी सत्ता, सज्जनों-संतों का दिल विशाल एवं कोमल होता है। वे कई बार असंत की दुष्टता को माफ कर सुधरने का मौका देते हैं। यह संतों का सबसे बड़े गुणों में से एक हैं।
उक्त उद्गार अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख डॉ. प्रणव पण्ड्या के हैं। डॉ. पण्ड्या नवरात्र साधना में जुटे देश-विदेश के गायत्री साधकों को आनलाइन संबोधित कर रहे थे। रामचरित मानस का उल्लेख करते हुए मानस मर्मज्ञ डॉ. पण्ड्या ने कहा कि जब कोई व्यक्ति श्रीराम से विमुख या छल करता है, तब उसे कहीं भी स्थान नहीं मिलता। इसका विभिन्न उदाहरण रामचरित मानस एवं प्राचीन गं्रथों में विद्यमान है। उन्होंने कहा कि इस तरह दुर्गति होना मन-विचार के अधोगामी होने का परिचायक है। नवरात्र साधना ऊर्ध्वगामी बनने के लिए साधक द्वारा किया जाने वाला सर्वोत्तम कार्य है। मन, वचन और कर्म से दृढ़ होकर किया जाना सत्कार्य ईश्वरभक्ति के समान है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है कि आत्मिक शक्ति के जागरण के साथ सद्बुद्धि प्राप्ति के उपाय करें। आत्मिक शक्ति हमें दुर्जनों से लड़ने की ताकत देती है, तो वहीं सद्बुद्धि दुर्जनों से बचाव करने के उपाय सुझाती है।
वहीं दूसरी ओर गायत्री तीर्थ में आनलाइन चल रहे पावन प्रज्ञा पुराण कथा के माध्यम से देश-विदेश के गायत्री साधकों को गायत्री महामंत्र के जप के साथ वैचारिक क्षमता को विकसित करने के लिए श्रेष्ठ साहित्यों का नियमित रूप से अध्ययन करने के प्रेरित किया गया। इस दौरान साधकों के विभिन्न शंकाओं का भी समाधान किये गये।